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* Home * News * Contents * Q&A * Jobs * Directory * IFSC * Link * RSS * Bhakti Sangam * Register * Login EDUCRATSWEB.COM >> देवी अहिल्या - EDUCRATSWEB.COM × search Web Image Sort by: Relevance Relevance Date देवी अहिल्या Posted By educratsweb.com ❄ Bhakti Sagar 🗓 Monday October 18 2021 👁 67 Tag : # अहिल्या, देवी, देवी अहिल्या देवी अहिल्या हिन्दू धर्म की सर्वाधिक सम्मानित महिलाओं में से एक है जिन्हे पञ्चसतियों में स्थान दिया गया है। अन्य चार हैं - मंदोदरी, तारा, कुंती एवं द्रौपदी। अहिल्या महर्षि गौतम की पत्नी थी और देवराज इंद्र के छल के कारण उन्होंने सदियों तक पाषाण बने रहने का दुःख भोगा। बहुत काल के बाद जब श्रीराम महर्षि विश्वामित्र के साथ गौतम ऋषि के आश्रम मे पधारे तब उन्होंने पाषाण रूपी अहिल्या का उद्धार किया। अहिल्या का महत्त्व इसलिए भी अधिक है क्यूंकि उनकी रचना स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने की थी और वो उन्ही की पुत्री मानी गयी। यही कारण है कि उन्हें "अयोनिजा" भी कहा जाता है। कथा के अनुसार एक बार परमपिता ब्रह्मा के मन में एक ऐसी स्त्री के रचना का विचार आया जिसमें किसी प्रकार का कोई दोष ना हो। तब उन्होंने अहिल्या की रचना की जो त्रिलोक में सर्वाधिक सुन्दर स्त्री थी। वो इतनी सुन्दर थी कि स्वयं स्वर्ग की अप्सराओं को भी उससे ईर्ष्या होने लगी। परमपिता ब्रह्मा ने उसका नाम अहिल्या (अ + हल्या), अर्थात जिसमें कोई दोष ना हो, रखा। एक अन्य मान्यता के अनुसार ब्रह्माजी ने उसे चिर यौवन का वरदान दिया और कहा कि वो सदा १६ वर्ष के समान ही रहेगी और उसका कौमार्य कभी भंग नहीं होगा। इसी कारण उसका ये नाम पड़ा क्यूंकि अहिल्या का एक अर्थ ये भी होता है कि वो भूमि जिसे जोता ना गया हो, स्त्री के सन्दर्भ में इसका अर्थ है वो स्त्री जिसका कौमार्य नष्ट ना हुआ हो। अब ब्रह्माजी को उसके विवाह की चिंता हुई। देवताओं, दैत्यों, मानव, नाग, गन्धर्व ऐसा कोई नहीं था जो अहिल्या से विवाह नहीं करना चाहता था। उन सबसे अधिक अहिल्या को प्राप्त करने की उत्कंठा देवराज इंद्र में थी। उसके विवाह के लिए ब्रह्मदेव ने एक प्रतियोगिता रखी जिसके अनुसार जो कोई भी संसार की परिक्रमा कर सबसे पहले आएगा उसे ही अहिल्या प्राप्त होगी। सभी लोगों पृथ्वी की परिक्रमा को निकल पड़े किन्तु महर्षि गौतम ने बुद्धि से काम लिया। उन्होंने कामधेनु गाय की परिक्रमा की और ब्रह्मदेव के पास अहिल्या का हाथ मांगने पहुंचे। उधर सबको परास्त करते हुए देवराज इंद्र भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा कर ब्रह्माजी के पास पहुंचे। दोनों अहिल्या का विवाह उनके साथ करने के लिए ब्रह्मदेव से प्रार्थना करने लगे। तब ब्रह्मदेव ने ये निर्णय लिया कि कामधेनु गाय में समस्त विश्व का वास है और उसकी परिक्रमा कर महर्षि गौतम ने सबसे पहले इस प्रतियोगिता को जीता है इसी कारण अहिल्या का विवाह उनसे ही होगा। ये सुनकर इंद्र को अपार दुःख हुआ किन्तु ब्रह्माजी की आज्ञा के आगे वे क्या कर सकते थे? अहिल्या का विवाह महर्षि गौतम के साथ हो गया किन्तु इंद्र अहिल्या को भुला नहीं पाए और उन्होंने निश्चय किया कि छल से या बल से, वो अहिल्या को प्राप्त कर के ही रहेंगे। बहुत काल बीत गया। गौतम और अहिल्या प्रेमपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। उन दोनों के कई पुत्र हुए जिनमें से शतानन्द ज्येष्ठ थे। बहुत समय बीत चुका था किन्तु इंद्र अभी भी इसी ताक में थे कि किस प्रकार वे अहिल्या को प्राप्त कर सकें। महर्षि गौतम प्रतिदिन मुर्गे की बांग सुनकर उठते थे और नदी तट पर जा कर स्नान कर वापस लौटते थे। उनकी ये दिनचर्या देख कर एक दिन इंद्र ने मध्यरात्रि को ही गौतम ऋषि के आश्रम के बाहर मुर्गे की बांग दी। महर्षि गौतम को लगा कि सूर्योदय हो गया है और वे उठकर स्नान करने चले गए। इंद्र को मौका मिला और वो महर्षि गौतम का वेश धारण कर कुटिया में चले गए और अहिल्या के साथ समागम किया। अहिल्या को इस बात का जरा भी भान नहीं था कि महर्षि गौतम के वेश में वो इंद्र है। उधर नदी पर पहुँच कर महर्षि गौतम को नदी पर पहुँच कर आकाश के तारों को देख कर ये भान हुआ कि अभी रात्रि ही है। तब वे किसी आशंका के बारे में सोचते हुए तत्काल अपने आश्रम की ओर चल पड़े। उधर जब इंद्र आश्रम से निकल रहे थे तभी महर्षि गौतम वहाँ पहुँचे। अहिल्या ने जब दो-दो महर्षि गौतम को देखा तो वे समझ गयी कि उनके साथ छल हुआ है। इंद्र तत्काल वहाँ से पलायन कर गए किन्तु महर्षि गौतम ने अपनी दिव्य दृष्टि से जान लिया कि वो इंद्र ही थे। तब क्रोध में आकर महर्षि गौतम ने इंद्र को नपुंसक हो जाने का श्राप दे दिया जिससे इंद्र के अंडकोष फूट गए। जब वे इंद्रलोक पहुँचे तो इसके बारे में अन्य देवताओं को बताया। तब सभी देवताओं ने उन्हें मेष (भेड़ा) का अंडकोष प्रदान किया और इसी कारण इंद्र "मेषवृण" कहलाये। इंद्र को श्राप देने के बाद भी गौतम ऋषि का क्रोध कम नहीं हुआ। अहिल्या ने बार-बार उनसे क्षमा याचना की किन्तु फिर भी गौतम ऋषि ने उन्हें श्राप दिया - "जिस स्त्री को अपने पति के स्पर्श का ज्ञान भी ना हो वो एक पाषाण की भांति है। इसीलिए तुम तत्काल पाषाण की हो जाओगी।" तब अहिल्या ने कहा - "स्वामी! आप त्रिकालदर्शी होते हुए भी इंद्र के छल को समझ नहीं पाए फिर मैं तो एक साधारण स्त्री हूँ। यदि मैं इंद्र के छल को समझ ना पायी तो इसमें मेरा क्या दोष?" ये सुनकर महर्षि गौतम का क्रोध कुछ कम हुआ और उन्हें लगा कि उन्होंने अकारण ही अहिल्या को श्राप दे दिया है। तब उन्होंने कहा कि "त्रेतायुग के अंतिम चरण में श्रीराम द्वारा तुम्हारा उद्धार होगा और तुम पुनः मुझे प्राप्त करोगी।" ये कहकर महर्षि गौतम अपना आश्रम छोड़ दूर तप करने चले गए और अहिल्या श्राप के प्रभाव से एक पाषाण में परिणत हो गयी। जब श्रीराम महर्षि विश्वामित्र के साथ ताड़का वध को निकले तो भ्रमण करते हुए वे महर्षि गौतम के उजाड़ आश्रम में पहुँचे। वहाँ महर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम को अहिल्या की कथा सुनाई और तब श्रीराम ने पाषाण रूपी अहिल्या के चरण स्पर्श कर उनका उद्धार किया। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि श्रीराम ने अपने पैरों के स्पर्श से अहिल्या का उद्धार किया। अपने पूर्ववत रूप में आने के बाद अहिल्या ने श्रीराम के कोटिशः धन्यवाद कहा और अंततः अपने शरीर को त्याग कर महर्षि गौतम के लोक चली गयी। बाद में जब विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को लेकर जनकपुरी पहुँचे तो सबसे पहले उन्होंने अहिल्या के पुत्र शतानन्द ऋषि को, जो उस समय महाराज जनक के कुलगुरु थे, उनके माता के उद्धार के बारे में सूचित किया जिसे सुनकर उन्हें असीम शांति हुई। देवी अहिल्या -------------------------------------------------------------------------------- इंद्र अंडकोष अंततः अंतिम अकारण अधिक अनुसार अन्य अपना अपनी अपने अपार अप्सराओं अभी अयोनिजा" अर्थ अर्थात असीम अहिल्या अहिल्या देवी आएगा आकर आकाश आगे आज्ञा आने आप आया आशंका आश्रम इंद्र इंद्रलोक इतनी इस इसका इसके इसमें इसलिए इसी इसीलिए ईर्ष्या उजाड़ उठकर उठते उत्कंठा उद्धार उधर उन उनका उनकी उनके उनसे उन्ही उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उससे उसे ऋषि एक एवं ऐसा ऐसी ओर और कई कथा कभी कम कर करते करना करने करोगी।" कहकर कहलाये। कहा का काम कामधेनु कारण काल कि किन्तु किया किया। किस किसी की कुंती कुछ कुटिया कुलगुरु के को कोई कोटिशः कौमार्य क्या क्यूंकि क्रोध क्षमा गए गए। गन्धर्व गया गया। गयी गयी। गयी। जब गाय गोस्वामी गौतम चरण चल चली चले चार चाहता चिंता चिर चुका छल छोड़ जनक जनकपुरी जब जरा जा जाओगी।" जाता जान जाने जिनमें जिन्हे जिस जिसका जिसके जिसमें जिससे जिसे जीता जीवन जो जोता ज्ञान ज्येष्ठ तक तट तत्काल तप तब तभी ताक तारा तारों ताड़का तुम तुम्हारा तुलसीदास तो त्याग त्रिकालदर्शी त्रिलोक त्रेतायुग था था। थी थी। थे थे? थे। थे। तब दिन दिनचर्या दिया दिव्य दी। दुःख दूर दृष्टि दे देख देखा देने देवताओं देवराज देवी दैत्यों दो-दो दोनों दोष दोष?" द्रौपदी। द्वारा धन्यवाद धर्म धारण नदी नपुंसक नष्ट नहीं ना नाग नाम निकल निकले निर्णय निश्चय ने पञ्चसतियों पति पत्नी पधारे पर परमपिता परास्त परिक्रमा परिणत पलायन पहले पहुँच पहुँचे पहुँचे। पहुंचे। पाए पायी पाषाण पास पुत्र पुत्री पुनः पूर्ववत पृथ्वी पैरों प्रकार प्रतिदिन प्रतियोगिता प्रदान प्रभाव प्राप्त प्रार्थना प्रेमपूर्वक पड़ा पड़े पड़े। फिर फूट बताया। बने बल बहुत बांग बात बाद बार बार-बार बारे बाहर बीत बुद्धि ब्रह्मदेव ब्रह्मा ब्रह्माजी भंग भांति भान भी भुला भूमि भेड़ा भोगा। भ्रमण मंदोदरी मध्यरात्रि मन महत्त्व महर्षि महाराज महिलाओं मांगने माता मानव मानी मान्यता मिला मुझे मुर्गे मे में मेरा मेष मेषवृण" मैं मौका यदि यही या याचना ये यौवन रखा। रखी रचना रहने रहे रहेंगे। बहुत रहेगी रात्रि रामचरितमानस रूप रूपी लक्ष्मण लगा लगी। लगे। लगे। तब लिए लिखा लिया लिया। लेकर लोक लोगों लौटते वध वरदान वर्ष वहाँ वापस वास विचार विवाह विश्व विश्वामित्र वे वेश वो व्यतीत शतानन्द शरीर शांति श्राप श्रीराम संसार सकते सकें। सदा सदियों सन्दर्भ सबको सबसे सभी समझ समय समस्त समागम समान सम्मानित सर्वाधिक साथ साधारण सुनकर सुनाई सुन्दर सूचित सूर्योदय से सोचते स्त्री स्थान स्नान स्पर्श स्वयं स्वर्ग स्वामी! हल्या हाथ हिन्दू ही हुआ हुआ। हुई। हुई। देवी हुए हूँ। है हैं है। है। कथा हो होगा होगा। होगी। होता होते होने हो। हो। अब १६ -------------------------------------------------------------------------------- if you have any information regarding Job, Study Material or any other information related to career. you can Post your article on our website. 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