allknowledgefun.blogspot.com Open in urlscan Pro
2607:f8b0:4020:807::2001  Public Scan

URL: https://allknowledgefun.blogspot.com/
Submission: On June 16 via api from US — Scanned from US

Form analysis 2 forms found in the DOM

https://allknowledgefun.blogspot.com/search

<form action="https://allknowledgefun.blogspot.com/search" class="gsc-search-box" target="_top">
  <table cellpadding="0" cellspacing="0" class="gsc-search-box">
    <tbody>
      <tr>
        <td class="gsc-input">
          <input autocomplete="off" class="gsc-input" name="q" size="10" title="search" type="text" value="">
        </td>
        <td class="gsc-search-button">
          <input class="gsc-search-button" title="search" type="submit" value="Search">
        </td>
      </tr>
    </tbody>
  </table>
</form>

POST //translate.googleapis.com/translate_voting?client=te

<form id="goog-gt-votingForm" action="//translate.googleapis.com/translate_voting?client=te" method="post" target="votingFrame" class="VIpgJd-yAWNEb-hvhgNd-aXYTce"><input type="text" name="sl" id="goog-gt-votingInputSrcLang"><input type="text"
    name="tl" id="goog-gt-votingInputTrgLang"><input type="text" name="query" id="goog-gt-votingInputSrcText"><input type="text" name="gtrans" id="goog-gt-votingInputTrgText"><input type="text" name="vote" id="goog-gt-votingInputVote"></form>

Text Content

ALLKNOWLEDGEFUN

https://allknowledgefun.blogspot.in/





FRIDAY, MAY 28, 2021


मध्य प्रदेश के प्राचीन अभिलेख






                                          मध्य प्रदेश के प्राचीन अभिलेख        
                                



































































































By iamksvr - May 28, 2021 1 comment:
Email ThisBlogThis!Share to TwitterShare to FacebookShare to Pinterest





THURSDAY, MAY 27, 2021


मध्यप्रदेश की जन - जातियाँ



                            मध्यप्रदेश की जन - जातियाँ


विशेष पिछड़ी जन जातियां और उनके क्षेत्र:
"दि शेड्यूल्ड परियाज एंड ट्राइब्स कमीशन" ने जनजातियों को चार वर्गों से बांटा है।
इनमें से सबसे अविकसित जनजातियों के रहवासी क्षेत्रों को "शेड्यूल्ड एरिया" या
"अनुसूचित क्षेत्र" घोषित कर दिया गया है। मध्यप्रदेश में सात विशेषʔपिछड़ी
जनजातियां हैं। इनका रहन-सहन, खान-पान, आर्थिक स्थिति, शिक्षा का प्रतिशत जनजातियों
के प्रादेशिक औसत से कम है।



इस कारण भारत सरकार ने इन्हें "विशेष पिछड़ी जनजातियों" के वर्ग में रखा है । इस
पुस्तक में इनका वर्णन निम्नालिखित क्रम दिया जा रहा हैं।
 1. बैगा (बैगायक क्षेत्र, मंडला जिला)
 2. भारिया (पाताल कोट क्षेत्र, छिन्दवाड़ा जिला)
 3. कोरबा (हिल कोरबा, छत्तीसगढ़)
 4. कमार (मुख्य रूप से रायपुर जिला)
 5. अबूझमाड़िया (बस्तर जिला)
 6. सहरिया (ग्वालियर संभाग)

उपर्युक्त सातों जनजातियों अपने विशिष्ट क्षेत्रों में ही "विशेष पिछड़ी जातियों के
रूप में मान्य हैं।" इन जनजातियों का रहवासी क्षेत्र "अनुसूचित क्षेत्र है, जिसके
विकास की विशिष्ट योजनाएं हैं।
बैगा (बैगायक क्षेत्र, मंडला जिला)
बैगा आदिवासी मध्यप्रदेश के मुख्यत: तीन जिलों-मंडला, शहडोल एवं बालाघाट में पाए
जाते हैं। इस दृष्टि से बैगा मध्यप्रदेश के मूल आदिवासी भी कहे जा सकते हैं। बैगा
शब्द अनेकार्थी है। बैगा जाति विशेष का सूचक होने के साथ ही अधिकांश मध्यप्रदेश में
"गुनिया" और "ओझा" का भी पर्याय है।
बैगा लोगों को इसी आधार पर गलती से गोंड भी समझ लिया जाता है जबकि एक ही भौगोलिक
क्षेत्र यह सही है कि बैगा अधिकांशत: गुनिया और ओझा होते हैं किन्तु ऐसा नहीं है कि
गुनिया और ओझा अनके वितरण क्षेत्र में बैगा जाति के ही पाए जाते हैं।में पायी जाने
वाली ये दोनों जातियां क्रमश: कोल और द्रविड़ जनजाति समूहों से सम्बद्ध हैं। इन
दोनों जातियों में विवाह संबंध होते हैं क्योंकि दोनों जातियां हजारों वर्षों से
साथ-साथ रह रही हैं। गोंडों के समान ही बैगाओं में भी बहुत से सामाजिक संस्तर है।
राजगोंडों के समान ही बैगाओं में भी विंझवार बड़े जमींदार हैं और उन्हें राजवंशी
होने की महत्ता प्राप्त हैं। मंडला में बैगाओं का एक छोटा समूह भरिया बैगा कहलाता
है। भारिया बैगाओं को हिन्दू पुरोहितों के समकक्ष ही स्थान प्राप्त है। ये हिन्दू
देवताओं की ही पूजा सम्पन्न करते हैं, आदिवासी देवताओं की नहीं। मंडला जमीन की सीमा
संबंधी विवाद का बैगाओं द्वारा किया गया निपटारा गोंडों को मान्य होता है।
स्मिल और हीरालाल (1915) बैगाओं को छोटा नागपुर की आदि जनजाति बुइयाँ की मध्यप्रदेश
शाखा, जिसे बाद में बैगा कहा जाने लगा, मानते हैं। जहां तक शाब्दिक अर्थ का प्रश्न
है भुईयां (भुई, पृथ्वी) और भूमिज (भूमि-पृथ्वी) समानार्थी हैं एवं "भूमि" से
संबंधित अर्थ बोध कराते हैं। यह मुमकिन है कि मध्यप्रदेश के इन आदि बांशन्दों को
बाद में आए हुए गोंडों ने बैगा को आदरास्पद स्थान दे दिया है।
इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भुईयां की इस (बैगा) शाखा ने छोटा
नागपुर से सर्वप्रथम छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया हो और कालान्तर में अन्य आदिवासियों
के द्वारा ये मंडला और बालाघाट के दुर्गम वनों में खदेड़ दिए गए हों। मंडला जिले का
"बैगायक" क्षेत्र आज भी सघन वनों से पूर्ण है। इस क्षेत्र के बैगा आज भी अति जंगली
जीवन बिता रहे हैं। इनकी तुलना बस्तर के माड़िया लोगों से की जाती है। मंडला के सघन
वनों में रहने वाले बैगाओं की बोली में पुरानी छत्तीसगढ़ी का प्रभाव है। बालाघाट के
बैगाओं की बोली में भी छत्तीसगढ़ी का प्रभाव स्वाभाविक रूप से देखने को मिलता है।
ग्रिथर्सन का यह कहना अर्थ रखता है कि पहले बैगा अधिकांशत: छत्तीसगढ़ के मैदान में
फैले थे और वहां से ही ये हैहयवंशी राजपूतों द्वारा दुर्गम क्षेत्रों की ओर भगाए
गए। भुइयां के अतिरिक्त, भनिया लोगों का भी संबंध बैगाओं से जोड़ा जाता है। बैगाओं
की एक शाखा मैना राजवंश ने किसी समय उड़ीसा में महानदी के दक्षिण में बिलहईगढ़
क्षेत्र पर शासन किया था। मंडला में ये कहीं पर "भुजिया" कहलाते हैं जो "भुइयाँ" का
ही तत्सम शब्द है।
बिंझवार लगभग पूरी तौर से गैर आदिवासी हो चुके हैं। वे गोमांस नही खाते बिंझवार,
नरोटिया और भारोटिया में रोटी-बेटी संबंध प्रचलित है, किन्तु इसमें स्थान-भेद से
परिवर्तन पाए जाते हैं, जैसे साथ में भोजन करने की मनाही है, अर्थात तीनों में
रोटी-बेटी के संबंधों का सीमित प्रचलन है। बालाघट में ऐसा कोई बंधन नहीं है। सभी
उपजातियों में गोंड के प्रचलित गोत्र नाम अपितु सामान्य नाम भी गोंडों और बैगाओं
में समान पाए जाते हैं। यह समानता दोनों आदिवासी जातियों के साथ-साथ रहने के कारण
ही पायी जाती है। पुराने जमाने में दोनों आदिवासी जातियों में विवाह आम बात थी। एक
गोंड युवती के बैगा से विवाह करने पर वह समान् स्वीकृत बैगा महिला मान ली जाती थी,
किन्तु बिंझवार, भारोदिया और नरोटिया अब स्वयं अन्य बैगा उपजातियों में भी विवाह
नहीं करते अस्तु गोंडों से विवाह करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। यह तथ्य हमें
राजगोंडों और राजवंशी गोंडों में भी मिलता है। दरअसल विकास की प्रक्रिया में
आदिवासी जातियों में स्वाभाविक रूप से सामाजिक स्तर बन गए भले ही इसके पीछे धार्मिक
बदलाव उतना नहीं जितना आर्थिक बदलाव है।
बैगा कृष्णवर्णीय और रूक्ष (कांतिहीन) शरीर वाले होते हैं। सिर के बालों को काटने
का रिवाज नहीं है। कभी-कभी कपाल के ऊपर के बाल कुछ मात्रा में अवश्य काट लिए जाते
हैं। बालों को इकट्ठा कर पीछे की ओर चोटी डाल ली जाती है। ये वर्ष में गिने चुने
अवसरों पर ही स्नान करते हैं। बैगा युवतियाँ आकर्षक होती हैं। उनके चेहरे और आंखों
की बनावट सुन्दर कही जा सकती है। इन्हें अन्य आदिवासी स्त्रियों से अलग पहचाना जा
सकता है। यद्यपि गोंड और बैगा जंगलों में साथ रहते हैं, तथापि गोंडों में द्रविड़
विशेषताएं और बैगाओं में मुंडा विशेषताएं परिलक्षित होती हैं।
 1. अधिवास
 2. भोजन
 3. कृषि
 4. वस्त्राभुषण
 5. शिकार
 6. समाज और अर्थव्यवस्था

t.me/mppscguruji


पाताल कोट के भारिया
भारिया जनजाति का विस्तार क्षेत्र मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला और
सरगुजा जिले हैं। इस अपेक्षाकृत बड़े भाग में फैली जनजाति का एक छोटा सा समूह
छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट नामक स्थान में सदियों से रह रहा हैं। पातालकोट स्थल को
देखकर ही समझा जा सकता है कि यह वह स्थान है जहां समय रूका हुआ सा प्रतीत होता है।
इस क्षेत्र के निवासी शेष दुनिया से अलग-थलग एक ऐसा जीवन जी रहे हैं जिसमें उनकी
अपनी मान्यताएं हैं, संस्कृति और अर्थ-व्यवस्था है, जिसमें बाहर के लोग कभी-कभार
पहुंचते रहते हैं किन्तु इन्हें यहां के निवासियों से कुछ खास लेना-देना नहीं।
पातालकोट का शाब्दिक अर्थ है पाताल को घेरने वाला पर्वत या किला। यह नाम बाहरी
दुनिया के लोगों ने छिंदवाड़ा के एक ऐसे स्थान को दिया है जिसके चारों ओर तीव्र ढाल
वाली पहाड़ियां हैं। इन वृत्ताकार पहाड़ियों ने मानों सचमुच ही एक दुर्ग का रूप रख
लिया है। इस अगम्य स्थल में विरले लोग ही जाते हैं। ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र में
एक ही जनजाति रहती है। वरन सच तो यह है कि पातालकोट 90 प्रतिशत आबादी भारिया जनजाति
की है, शेष 10 प्रतिशत में दूसरे आदिवासी हैं। इस स्थल की दुर्गमता ने ही यहां
आदिवासी जीवन और संस्कृति को यथावत रखने में सहायता दी है।
1981 की जनगणना में पातालकोट में भारिया को "जंगलियों के भी जंगली" कहा गया था।
भारिया शब्द का वास्तविक अर्थ ज्ञान नहीं है। कुछ लोगों का मत है कि अज्ञातवास में
जब कौरवों के गुप्तचर, पांडवों को ढूंढ रहे थे तब अर्जुन ने अभिमंत्रित र्भरूघास के
शस्त्र देकर इन्हें गुप्तचरों से लड़ने को भेज दिया। इन्होंने विजय प्राप्त की और
बत से इन्हें भारिया नाम मिला। इस किंवदन्ती में कितनी सच्चाई है, यह तो खोज की ही
बात है।
1881 से 1981 तक की शताब्दी में भारिया जनजाति के इस समूह में मामूली फर्क आया है,
वह भी तब जबकि पिछले पच्चीस वर्षों से मध्यप्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र की उन्नति के
लिए लगातार प्रयास किए। यहां तक कि पूरे पातालकोट क्षेत्र को विशेष पिछड़ा घोषित कर
दिया गया है।
पातालकोट की कृषि आदिम स्थाई कृषि है। कुल कृषि भूमि का 15 प्रतिशत खरीफ फसलों के
अन्तर्गत है। प्रमुख फसलें धान, कोदो और कुटकी हैं। इन फसलों की कटाई अक्टूबर तक हो
जाती है। यद्यपि रबी यहां की फसल नहीं है किन्तु घर के आसपास के खाली क्षेत्र में
चना बो दिया जाता है। आदिवासियों के अनुसार चने की यह छोटी फसलें भी अत्यंत श्रम
साध्य हैं, क्योंकि पातालकोट में बंदरों का उत्पात काफी है और मौका पाते ही वे फसल
को तबाह करने से नहीं चूकते। गेहूं भी बोया जाता है पर इसका उत्पादन नगण्य है।
पातालकोट में गेहूं और चना नगद फसलें हैं क्योंकि इस पूरे उत्पाद को बेच दिया जाता
है ताकि कुछ नकद हाथ लग सके तथा अन्य जरूरत की वस्तुएं खरीदी जा सकें।
कृषि के उपरान्त खेतों में मजदूरी करना प्रमुख कार्य है। पातालकोट के आसपास गोंडों
के खेत फैले हुए हैं। भारिया पातालकोट से आकर इनके खेतों में भी काम करते हैं। एक
अनुमान के अनुसार भारिया, गोंडों के खेतों 60-70 दिनों से अधिक कार्य नहीं करते।
शासकीय विकास कार्यों में भी वे मजदूरी का काम कर लेते हैं।


कोरबा
कोल प्रजाति की जनजाति मध्यप्रदेश में छोटा नागपुर से ही आयी है। यह बिलासपुर,
रायगढ़ और सरगुजा जिला में प्रमुख रूप से पायी जाती है। डालटन उनके बारे में लिखता
है, असुरों के साथ मिश्रित तथा उनसे बहुत अलग भी नहीं, सिवा इसके कि ये यहां अधिकतर
कृषक हैं। वे वहां के धातु गलाने का काम करने वाले लोग हैं। हम सबसे पहले कोरबा से
मिलते हैं जो कि उक्त नाम के अन्तर्गत "कालेग्मिन श्रृंखला" की टूटी हुई कड़ी है।
यही जनजाति पश्चिम की ओर सरगुजा, रायपुर तथा पालाभाड़ा पठार पर से होती हुई अधिक
संगठित जनजाति कुर तथा रीवा के मुसाइयों तक पहुंचती है। सेन्ट्रल प्राविन्स में वह
विन्ध्याचल से सतपुड़ा तक पहुंच जाती है।
बहुत ही पिछड़ी जनजातियों में से एक है। यह जनजाति उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर,
मध्यप्रदेश के जशपुर और सरगुजा और बिहार के पलामू जिलों में मुख्य रूप से पायी जाती
है। उत्तरप्रदेश के कोरबा का मजूमदार और पलामू के कोरबा का सण्डवार नामक विद्वानों
ने विस्तृत अध्ययन किया था। पहाड़ों में रहने वाले कोरबा पहाड़ी कोरबा कहलाते हैं
तथा मैदानी क्षेत्रों के कोरबा डीह कोरबा कहलाते हैं। मिर्जापुर के कोरबा अपने को
डीह कोरबा तथा पहाड़ी कोरबा के अतिरिक्त डंड कोरबा श्रेणियां बताते हैं।


शरीर
कोरबा कम ऊंचाई के तथा काले रंग के लोग हैं। ये मजबूत यष्टि वाले लोग हैं किन्तु
उनके पैर शरीर की तुलना में कुछ छोटे दिखई पड़ते हैं। पुरूषों की औसत ऊंचाई 5 फिट 3
इंच तथा महिलाओं की 4 फिट 9 इंच पायी जाती है। पहाड़ी कोरबाओं की दाढ़ी और मूंछों
के अलावा शरीर के बाल भी बड़े रहते हैं। साधारणत: वे कुरूप दिखलाई देते हैं।
t.me/mppscguruji


सामाजिक संगठन
इनकी अपनी पंचायत है जिसे "मैयारी" कहते हैं। सारे गांव के कोरबाओं के बीच एक
प्रधान होता है जिसे 'मुखिया" कहते हैं। बड़े-बुढ़े तथा समझदार लोग पंचायत के सदस्य
होते हैं। पंचायत का फैसला सबको मान्य होता है। इनका घर बहत ही साधारण होता है। ये
जंगल में घास-फूस से बने छोटे-छोटे घरों में रहते हैं। जो लोग गांव में बस गए हैं,
वे बांस और लकड़ी के घर बनाते और खपरैल तथा पुआल से छाते हैं।
पहाड़ी कोरबा पहले बेआरा खेती (शिफ्टिंग कल्टिवेशन) भी करते थे, लेकिन सरकारी
नियमों के तरह इस प्रकार की खेती पर बंदिश है। डीह कोरबा साधारण खेती करते हैं।
कोरबा जनजाति की एक उपजाति कोरकू है और जिस तरह सतपुड़ा की दूसरी कोरकू जनजाति
मुसाई भी कहलाती है उसी तरह कोरकू भी "मुसाई" नाम से पहचाने जाते हैं। जिनका
शाब्दिक अर्थ है चोर या डकैत। कूक कोरबा और कूक को एक ही जनजाति के दो उपभेद मानते
हैं। जबकि ग्रिमर्सन भाषा के आधार पर उनकी भाषा को असुरों के अधिक निकट पाते हैंं।
कोरबा लोगों में "मांझी" सम्मान सूचक पदवी मानी जाती है। संथालों में भी ऐसा ही है।
पहाड़ी कोरबा मध्यप्रदेश की आदिम जातियों में से है जिसका जीवन-स्तर तथा विकास
अत्यंत ही प्रारंभिक व्यवस्था में हैं। यह उनके जीवन के प्रत्येक कार्यकलापों में
देखा जा सकता है। रहन-सहन के मामले में वे शारीरिक स्वच्छता से कोसों दूर हैं। उनके
सिर के बाल मैल के कारण रस्सी जैसी लटाओं में परिवर्तित हो जाती है। महिलाओं के
कपड़े निहायत गंदे रहेते हैं। शरीर के अंग प्रत्यंगों पर मैल की परत पायी जाती है।
महिलाएं आभूषण के आधार पर केवल लाल रंग की चिन्दियां सिर पर बांध लेती है। उनकी
सामाजिक मान्यताएं भी अन्य आदिवासियों की तुलना में काफी पिछड़ी हुई है , जैसे कहा
जाता है कि पहाड़ी कोरबा कुछ परिस्थितियों में बहन से भी विवाह कर सकते हैं। पहाड़ी
कोरबा में विवाह के लिए माँ-बाप की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
शिकार प्रियता के साथ शिकार से संबंधित उनके अंधविश्वास ओर टोने-टोटके भी हैंं,
जैसे शिकार प्रियता के साथ शिकार से संबंध्धित उनके अंधविश्वास ओर टोने-टोटके भी
हैंं, जेसे शिकार यात्रा के समय बच्चे का रोना अशुभ माना जाता है। कुण्टे महोदय के
अनुसार शिकार यात्रा पर जाते समय एक व्यक्ति ने अपने दो वर्षीय बच्चे को पत्थर पर
पटक दिया क्योंकि उसने रोना चालू कर दया था। इसी भांति वे शिकार की यात्रा के पूर्व
मुर्गों के सामने अन्न के कुछ दाने छिटका देते हैं। यदि मुर्गों ने ठोस दाने को
पहले चुना तो यात्रा की सफलता असंदग्धि मानी जाती है। कोरबा के लोगों में किसी
प्रकार के आदर्श को महत्व नहीं दिया जाता, जंगल का कानून ही उनकी मानसिकता है।
शिकार यात्रा के समय बच्चे का रोना अशुभ माना जाता है। कुण्टे महोदय के अनुसार
शिकार यात्रा पर जाते समय एक व्यक्ति ने अपने दो वर्षीय बच्चे को पत्थर पर पटक दिया
क्योंकि उसने रोना चालू कर दया था। इसी भांति वे शिकार की यात्रा के पूर्व मुर्गों
के सामने अन्न के कुछ दाने छिटका देते हैं। यदि मुर्गों ने ठोस दाने को पहले चुना
तो यात्रा की सफलता असंदग्धि मानी जाती है। कोरबा के लोगों में किसी प्रकार के
आदर्श को महत्व नहीं दिया जाता, जंगल का कानून ही उनकी मानसिकता है।
इन क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी का विशेष महत्व है। शीतकाल में आदिवासी लकड़ जलाकर ही
उष्णता प्राप्त करते हैं। नगद पैसा उन्हें अधिकतर अचार की चिरौंजी से मिलता है।
चिरौंजी की मांग तथा मूल्य दोनों में लगातार वृद्धि हो रही है। ये लोग जड़ी-बूटियों
को बेचना तो दूर उनके बारे में किसी अन्य को बताना भी पसंद नहीं करते।




कमार
1961 और 1971 में की गई कमारों की जनसंख्या का जिलेवार विवरण प्राप्त है। जिसके
अनुसार कमार लगभग 10 प्रतिशत ग्रामीण अधिवासी में रहने वाले आदिवासी हैं।
रायपुर जिले के कमार विशेष पिछड़े माने गए हैं। इस जिले में वे बिंद्रावनगढ़ और
धमतरी तहसील में पाए जाते हैं। कमार विकास अभिकरण का मुख्यालय गरिमा बंद में है
जिसके अंतर्गत घुरा, गरियाबंद, नातारी ओर मैनपुर विकास खंड कमारों की मूलभूमि है
जहाँ से वे बाहर गए या मजदूरों के रूप में ले जाए गए।
19वीं सदी तक कमार अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में थे।उनमें से कुछ विवरण अब
संदेहास्पद लगने लगे, जैसे कतिपय अंग्रेजी लेखकों ने इन्हें गुहावासी बतलाया है। आज
के समय में मध्यप्रदेश के वनों या पर्वतों में कोई भी आदिवासी समूह गुहावासी नहीं
है। लिखे गए उपयुक्त अंशों में वर्तमान में उनके व्यवसायों मेंटोकरी बनाना भी
सम्मिलित हैं। जिसमें उन्हें बसोरों से प्रतिस्पर्धा करना पड़ती है। शासकीय सहायता
योजना के अंतर्गत उन्हें कम दामों में बांस उपलब्ध कराया जाता है और चटाईयाँ एवं
टोकरियाँ की सीधे ही खरीद की जाती हैं। बदलते जमाने में कमारों ने कृषि करना भी सीख
लिया है और 1981 में 444 कमार परिवारों के पास स्वयं की छोटी ही सही कृषि भूमि थी।
कमारों के दो उप भेद है-बुधरजिया और मांकडिया। बुधरजिया उच्च वर्ग के माने जाते
हैं, जबकि मांकडिया निम्न वर्ग के। ये बंदरों का मांस खाते थे। दोनों ही वर्ग कृषि
करने लगे हैं।




अबूझमाड़िया


अबूझमाड़िया या हिल माड़िया बस्तर के अबूझमाड़ क्षेत्र में बसे हैं। इनका वर्णन इस
पुस्तक में अन्यत्र भी दिया गया है। इनकी अधिकतर जनसंख्या नारायणपुर तहसील में है।
इनके गांव अधिकतर नदियों के किनारे अथवा पहाड़ी ढलानों पर पाए जाते हैं। प्रत्येक
घर के चारों ओर एक जाड़ी होती है। जिसमें केला, सब्जी और तम्बाकू उगाई जाती है।
इनके खेत ढलवा भूमि में होते हैं जिनमें धान उगाया जाता है। जंगली क्षेत्रों को साफ
करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि क्षेत्र में बांस अधिकता से न पाए जाते हों,
क्योंकि बांसों के पुन: अंकुरित होने का खतरा रहता है। अबूझमाड़िया स्थानांतरी कृषि
करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को साधारणत: अपनी आवश्यकता की भूमि प्राप्त हो जाती है।
जंगलों में कृषि की भूमि का चुनाव करते समय गांव का मुखिया यह निर्णय देता है कि
किस व्यक्तित को कितनी भूमि चाहिए और वह कहाँ होगी। जंगल सफाई का काम सामूहिक रूप
से किया जाता है। खेतों में अलग-अलग बाड़ नहीं बनाई जाती है तरन पूरे (पेंडा) को
घेर लिया जाता है। भेले ही वह 200 या 300 एकड़ का हो। यह बड़ा 'बाड़ा' अत्यधिक
मजबूत बनाया जाता है। यहाँ के जंगलों में केवल सुअर ही इन बांड़ों में घुसने का
प्रयत्न करते है जिन से रखवाली करने के लिए मचान बनाए जोते हैं। धान के अतिरिक्त
चमेली, गटका, कसरा, जोधरा इत्यादि मोटे अनाज उगाए जाते हैं, जिन्हें जंगली सुअरों
से विशेष नुकसान पहुँचता है। अबूझमाड़ का "बाइसन होर्न" नृत्य प्रसिद्ध है।
हिंदुस्तान में कहीं भी बाइसन नहीं पाया जाता है। दरअसल अबूझ माड़िए गाय या भैंस के
सींग लगाकर नाचते हैं। गांव पहाड़ियों की चोटियों पर बसाए जाते हैं। कोशिश की जाती
है कि तीन ओर से पर्वत हो और एक ओर से नदी। यद्यपि अब इस प्रकार की स्थिति में कुछ
परिवर्तन आ रहा है। अबूझमाड़ के भौगोलिक क्षेत्र के नामकरण में गांव का महत्वपूर्ण
हाथ है। साधारणत: प्रमुख गाँवों का बाहरी हिस्सा 'मड' या बाजार के काम में लाया
जाता है। इन बाजारों में निश्चित ग्रामों से अबूझमाड़ी आते हैं। दूसरे शब्दों में
ये 'मड' एक सुनिश्चित आर्थिक प्रभाव क्षेत्र को बतलाते हैं।


अबूझमाड़ बस्तर जिले का एक प्राकृतिक विभाग है जिसमें बहुत सी पर्वतीय चोटियाँ
गुंथी हुई प्रतीत होती है। इनमें क्रम नहीं दिखाई पड़ता, अपितु चारों तरफ घाटियाँ
और पहाड़ियों का क्रम बढ़ता नजर आता है। इन पहाड़ियों के दोनों ओर जल विभाजक मिलते
हैं, जिनसे निकलने वाली सैकड़ों नदियाँ क्षेत्र की ओर भी दुर्गम बना देती हैं।
पहाड़ियों की ऊँचाई धरा से 1007 मीटर तक हैं कुल मिलाकर 14 पहाड़ियों की चोटियाँ
900 मीटर से अधिक ऊँची हैं। भूगोल की भाषा में इन पहाड़ियों में अरोम प्रणाली है,
किंतु यह सब छोटे पैमाने पर है। कुल क्षेत्र की प्रवाह प्रणाली तो पादपाकार ही है।
बड़ी नदियों के नाम क्षेत्र के मानचित्रों में मिल जाते हैं, पर छोटी नदियाँ
अनामिका हैं। अबूझमाड़ियों ने अपनी बोली में इन छोटी से छोटी नदियों को कुछ न कुछ
नाम दे रखे हैं और सभी नामों के पीछे नदी सूचक शब्द मुण्डा जुड़ा रहता है, ठीक वैसे
ही, जैसे चीनी भाषा में क्यांग। चीनी भाषा में चांग सी क्यांग और सी क्यांग का अर्थ
चांग सी नदी और सी नदी है। कुछ ऐसी ही अबूझमाड़ में। यहाँ कुछ छोटी नदियों के नाम
हें, कोरा मुण्डा, ओर मुण्डा, ताल्सि मुण्डा इत्यादि। इन्हें क्रमश: कोरा नदी, ओर
नदी तथा तालिन नदी भी कहा जा सकता है। न केवल नदियों के लिए हिम माड़ियाँ की अपनी
भाषा में अलग शब्द हैं, बल्कि पर्वतों को भी वे कोट, कोटि या पेप कहते हैं, जैसे
धोबी कोटी, कंदर कोटी, क्या कोटी और राघोमेट। उपर्युक्त शब्दां की रचना से प्रतीत
होता है कि संस्कृत का पर्वतार्थी शब्द 'कूट' हो न हो, मुड़िया भाषा की ही देन है।
कंदर से कंदरा शब्द की उत्पत्तित भी प्रतीत होती है।
t.me/mppscguruji


सहरिया
सहरिया का अर्थ है शेर के साथ रहने वाला। सहरिया जनजाति का विस्तार क्षेत्र अन्य
जनजातियों के छोटे क्षेत्रों की तुलना में भिन्न प्रकार का है। यह जनजाति
मध्यप्रदेश के उत्तर पश्चिमी जिलों में फैली हुई है। यह जनजाति आधुनिक ग्वालियर एवं
चंबल संभाग के जिलों में प्रमुखता से पाई जाती है। इन संभागों के जिलों में इस
जनजाति की जनसंख्या का 84.65 प्रतिशत निवास करता है। शेष भाग भोपाल, सागर, रीवा,
इंदौर और उज्जैन संभागों में निवास करता है। पुराने समय में यह समस्त क्षेत्र
वनाच्छादित था और यह जनजाति शिकार और संचयन से अपना जीवन-यापन करती थी किंतु अब
अधिकांश सहरिया या तो छोटे किसान हैं या मजदूर। इनका रहन-सहन और धार्मिक मान्यताएँ
क्षेत्र के अन्य हिंदू समाज जैसी ही हैं किंतु गोदाना गुदाने की परंपरा अभी भी
प्रचलित है। सहरिया जनजाति होने के कारण मोटे अन्न पर निर्भर हैं। शराब और बीड़ी के
विशेष शौकीन है।
सहरिया लोगों के स्वास्थ्य परीक्षण का कार्य 2-3 वर्षों में (1990-92) सघन रूप से
चला। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की शाखा आर.एम.आर.सी. के निदेशक डॉ. रविशंकर
तिवारी बतलाते हैं कि सहरिया लोगों में क्षय रोग साधारण जनता की तुलना में कई गुना
अधिक विद्यमान है, यह भ्रांति तोड़ता है कि क्षय रोग जनजातियों में कम पाया जाता
है।


पारधी
पारधी मराठी शब्द पारध का तद्भव रूप है जिसका अर्थ होता है आखेट। मोटे तौर पर पारधी
जनजाति के साथ बहेलियों को भी शामिल कर लिया जाता है। अनुसूचित जनजातियों की शासकीय
सूची में भी पारधी जनजाति के अंतर्गत बहेलियों को सम्मिलित किया गया है। मध्यप्रदेश
के एक बड़े भाग में पारधी पाए जाते हैं। पारधी और शिकारी में मुख्य अंतर यह है कि
शिकारी आखेट करने में बंदूकों का उपयोग करते हैं जबकि पारधी इसके बदले जाल का
इस्तेमाल करते हैं। पाराकीयों द्वारा बंदूक के स्थान पर जाल का उपयोग किन्हीं
धार्मिक विश्वासों के आधार पर किया जाता है। उनका मानना है कि महादेव ने उनहें वन
पशुओं को जाल से पकड़ने की कला सिखाकर बंदूक से पशुओं के शिकार के पाप से बचा लिया
है। फिर भी इनके उपभेद भील पारधियों में बंदूक से शिकार करने में कोई प्रतिबंध नहीं
है। भील पारधी भोपाल, रायसेन और सीहोर जिलों में पाए जाते हैं।
t.me/mppscguruji




पारधियों के उपभेद


गोसाई पारधी : गोसाई पारधी गैरिक वस्त्र धारण करते हैं। तथा भगवा वस्त्रधारी साधुओं
जैसे दिखाई देते हैं। ये हिरणों का शिकार करते हैं।


चीता पारधी : चीता पारधी आज से कुछ सौ वर्ष पूर्व तक चीता पालते थे किंतु अब भारत
की सीमा रेखा से चीता विलुप्त हो गया है। अतएव अब चीता पारधी नाम का पारधियों का एक
वर्ग ही शेष बचा है। चीता पारधियों की ख्याति समूची दुनिया में थी। अकबर और अन्य
मुगल बादशाहों के यहाँ चीता पारधी नियमित सेवक हुआ करते थे। जब भारत में चीता पाया
जाता था तब चीता पारधी उसे पालतू बनाने का कार्य करते और शिकार करने की ट्रनिंग
देते थे। किंतु यह सब बाते हैं बीते युग की जब चीते और पारधियों का एक चित्र हजारों
पौंड मूल्य में यूरोप में खरीदा गया।
भील पारधी : बंदूकों से शिकार करने वाले।
लंगोटी पारधी : वस्त्र के नाम पर केवल लंगोटी लगाने वाले पारधी।
टाकनकार और टाकिया पारधी : सामान्या शिकारी और हांका लगाने वाले पारधी।
बंदर वाला पारधी : बंदर नचाने वाले पारधी।
शीशी का तेल वाले पारधी : पुराने समय में मगर का तेल निकालने वाले पारधी।
फांस पारधी : शिकार को जाल में पकड़ने वाले।
बहेलियों का भी एक उपवर्ग है जो कारगर कहलाता है। यह केवल काले रंग के पक्षियों का
ही शिकार करता है। इनके सभी गोत्र राजपूतों से मिलते हैं, जैसे सीदिया, सोलंकी,
चौहान और राठौर आदि। सभी पारधी देवी के आराधक है। लंगोटी पारधी चांदी की देवी की
प्रतिमा रखते हैं। यही कारण है कि लंगोटी पारधियों की महिलाएँ कमर से नीचे चांदी के
आभूषण धारण नहीं करती और न ही घुटनों के नीचे धोती, क्योंकि ऐसा करने से देवी की
बराबरी करने का भाव आ जाता है यह उनकी मान्यता है।




अगरिया
अगरिया विशष उद्यम वाली गोधे की उप जनजाति है अगरिया मध्यप्रदेश के मंडला, शहडोल
तथा छत्तीसगढ़ के जिलों एवं इण्डकारण्य में पाए जाते हैं। अगरिया लोगों के र्प्रमुख
देवता 'लोहासूर' हैं जिनका निवास धधकती हुई भट्टियों में माना जाता है। वे अपने
देवता को काली मुर्गी की भेंट चढ़ाते हैं। मार्ग शीर्ष महीने में दशहरे के दिन तथा
फाल्गुन मास में लोहा गलाने में प्रयुक्त यंत्रों की पूजा की जाती है। इनका भोजन
मोटे अलाज और सभी प्रकार के मांस है। ये सुअर का मांस विशेष चाव से खाते हैं। इनमें
गुदने गुदवाने का भी रिवाज है। विवाह में वधु शुल्क का प्रचलन है। यह किसी भी
सोमवार, मंगलवार या शुक्रवार को संपन्न हो सकता है। समाज में विधवा विवाह की
स्वीकृति है। अगरिया उड़द की दाल को पवित्र मानते हैं और विवाह में इसका प्रयोग शुभ
माना जाता है।
जिस तरह प्राचीन काल में ये असुर जनजाति कोलों के क्षेत्रों में लुहार का कार्य
संपन्न करते रहे हैं, उसी भांति अगरिया गोंडों के क्षेत्र के आदिवासी लुहार हैं।
ऐसा समझा जाता है कि असुरों और अगरियों दोनों ही जनजातियों ने आर्यों के आने के
पूर्व ही लोहा गलाने का राज स्वतंत्र रूप से प्राप्त कर लिया था। अगरिया प्राचीनकाल
से ही लौह अयस्क को साफ कर लौह धातु का निर्माण कर रहे हैं। लोहे को गलाने के लिए
अयस्क में 49 से 56 प्रतिशत धातु होना अपेक्षित माना जाता है किंतु अगरिया इससे कम
प्रतिशत वालीं धातु का प्रयोग करते रहे हैं। वे लगभग 8 किलो अयस्क को 7.5 किलां
चारकोल में मिश्रित कर भट्टी में डालते हैं तथा पैरो द्वारा चलित धौंकनी की सहायता
से तीव्र आंच पैदा करते हैं। यह चार घंटे तक चलाई जाती है तदंतर आंवा की मिट्टी के
स्तर को तोड़ दिया जाता है और पिघले हुए धातु पिंड को निकालकर हथौड़ी से पीटा जाता
है। इससे शुद्ध लोहा प्राप्त होता है तथा प्राप्त धातु से खेतों के औजार,
कुल्हाड़ियाँ और हंसिया इत्यादि तैयार किए जाते हैं।


t.me/mppscguruji


खैरवार
खैरवार मुंडा जनजाति समूह की एक प्रमुख जनजाति है। खैरवार अपना मूल स्थान खरियागढ़
(कैमूर पहाड़ियाँ) मानते हैं, जहाँ से वे हजारी बाग जिले तक पहूँचे। विरहोर स्वयं
को खैरवान की उपशाखा मानते हैं। मिर्जापुर और पालामऊ मे खैरवार स्वयं को अभिजात्य
वर्ग का मानते हैं और जनेऊ धारण करते हैं। दरअसल अपने विस्तृत विवतरण क्षेत्र में
खैरवारों के जीवन-स्तर में भारी अंतर देखने को मिलता है। जहाँ एक ओर छोटा नागपुर
में उन्होंने लगभग सवर्ण जातीय स्तर को प्राप्त किया वहीं अपने मूल स्थान
मध्यप्रदेश के अनेक हिस्सें में ये विशिष्ट धन्यों वाले आदिवासी के रूप में रह गए।


मध्यप्रदेश के कत्था निकालने वाले खैरवान
मध्यप्रदेश के बिलासपुर, मंडला, सरगुजा और विंध्य क्षेत्र में कत्था निकालने वाले
खैरवारों को खैरूआ भी कहा जाता है। खैरवान कत्था निकालने के अतिरिक्त वनोपज संचयन
तथा मजदूरी का कार्य भी करते हैं। मध्यप्रदेश के उन भागों में जहाँ खैरवान स्थाई
रूपसे निवास करते हैं, कत्था निकालने के मौसम के पूर्व ही जंगलों में पहुँच जाते
हैं और अस्थाई मकान बना लेते हैं तथा काम पूरा होने के बाद झोपड़ियों को छोड़कर फिर
अपने-अपने मूल ग्राम की ओर लौट जाते हैं


telegram group 
t.me/mppscguruji


परिका (पनका)


पनका द्रविड़ वर्ग की जनजाति है। छोटा नागपुर में यह पाने जनजाति के नाम से जानी
जाती है। ऐसा कहा जाता है। कि संत कबीर का जन्म जल में हुआ था और वे एक पनका महिला
द्वारा पाले-पोसे गए थे। पनका प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़ और विन्ध्य क्षेत्र में पाए
जाते हैं। आजकल अधिसंख्य पनका कबीर पंथी हैं। ये 'कबीरहा' भी कहलाते हैं। ये
मांस-मदिरा इत्यादि से परहेज करते हैं। दूसरा वर्ग 'शक्ति पनका' कहलाता है। इन
दोनों में विवाह संबंध नहीं है। इनके गोत्र टोटम प्रधान हैं, जैसे धुरा, नेवता,
परेवा आदि। कबीर पंथी पनकाओं के धर्मगुरू मंति कहलाते हैं जा अक्सर पीढ़ी गद्दी
संभालते हैं। इसी प्रकार दीवान का पद भी उत्तराधिकार से ही प्राप्त होता है। एक
गद्दी 10 से 15 गांवों के कबीरपंथियों के धामिर्क क्रियाकलापों की देख-रेख करती है।
कबीरदास जी को श्रद्धा अर्पण के उद्देश्य से माघ और कार्तिक की पूर्णिमा को उपवास
रखा जाता है। कट्टर कबीर पंथी देवी-देवताओं को नहीं पूजते किंतु शक्ति पनिका अनेक
देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। कबीरहा पनका महिला एवं पुरूष श्वेत वस्त्र तथा गले
में कंठी धारण करते हैं। अन्य आदिवासी की तुलना में छत्तीसगढ़ के पनका अधिक
प्रगतिशील हैं। इनमें से कई बड़े भूमिपति भी हैं, किन्तु ये कपड़े बुनने का कार्य
करते हैं। गरीब पनके हरवाहों का काम करते हैं। पनका जनजाति मूल रूप से कपड़ा बुनने
का कार्य करती है।































By iamksvr - May 27, 2021 No comments:
Email ThisBlogThis!Share to TwitterShare to FacebookShare to Pinterest




SUNDAY, MAY 17, 2020


बाबासाहेब ने भगत सिंह की फांसी क्यों नही रुकवाई?


FAKE NEWS : बाबासाहेब ने भगत सिंह की फांसी क्यों नही रुकवाई?




23 मार्च को देश में शहीद दिवस मनाया जाता है। 1931 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भगत
सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ाया गया था। हालांकि वैलेंटाइन डे का विरोध
करने वालों ने सोशल मीडिया के माध्यम से 14 फरवरी को ही शहीद दिवस मना चुके हैं।
खैर! मुददा यह है कि पिछले कई सालों से सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण इसका
दुरुपयोग भी खूब हो रहा तो लोग सवाल भी पूछ बैठे कि यदि गांधी, नेहरू, सरदार पटेल,
अम्बेडकर आदि इतने बड़े वकील थे तो उन्होंने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए पैरवी
क्यों नही की?
सवाल व्यंग्य के रूप में हो सकता है, नफरत या आक्रोश में हो सकता है या फिर
जिज्ञासावश भी हो सकता है मगर सवाल प्रथम दृष्टया उचित लगता है। मगर समस्या यह है
कि हम तुलना कहाँ से शुरू करते हैं? आजकल गांधी और अम्बेडकर दोनों के सिद्धांत
भारतीय राजनीति में मोहरे की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं जबकि समकालीन होते हुए इन
दोनों में छत्तीस् का आंकड़ा था और आज दोनों एक ही निशाने से देखे जा रहे हैं। जिस
रूप में सवाल उठते हैं हमे उसी रूप में तुलना समझनी होगी खासकर भगत सिंह, अम्बेडकर
के मध्य।
डॉ अम्बेडकर जब स्कूल जाते थे तो स्कूल के बाहर दरबाजे के पास बैठकर पढ़ते थे जबकि
गांधी व भगत सिंह जैसा कोई भी नेता, क्रन्तिकारी के साथ ऐसा बर्ताव नही हुआ। डॉ
अम्बेडकर जब नौकरी करने बड़ोदा गये तो उन्हें किराये पर होटल, धर्मशालाएं, कमरे नही
मिले। डॉ अम्बेडकर जब सिडनम कॉलेज में प्रोफेसर बने तो बच्चे उनसे पढ़ने को राजी नही
हुए। आप सोचेंगे कि यह समस्या का फांसी वाले सवाल से क्या मतलब? जब आप प्रत्येक
महापुरुष की कहानी नही पढोगे तो उसको समझना भी मुश्किल होता है इसलिए सवाल बनाने
उठने से पहले उसकी पूरी जानकारी अवश्य लेनी चाहिए और आज के समय में यह जरूरी भी है।
अब मुख्य सवाल पर आते हैं। जून 1923 से बाबा साहेब ने वकालत का काम शुरू किया लेकिन
उन्हें बार काउंसिल में भी बैठने को जगह नही दी गई इसलिए एक मि0 जिनावाला नाम के
व्यक्ति की सहायता बामुश्किल बैठने का स्थान मिला मगर समस्या यह हुई कि जिसे भी यह
पता चलता था कि डॉ अम्बेडकर एक अछूत जाति से हैं वे छूत की बीमारी लगने की डर से
उन्हें केस नही देते थे। एक गैर ब्राह्मण अपना केस हार जाने के बाद बाबा साहेब के
पास आया और बाबा साहेब ने उस केस को जीत लिया तब बाबा साहेब की ख्याति बढ़ने लगी
लेकिन वकालत उनकी रोजी रोटी का साधन नही बल्कि समाज सेवा के रूप में रह गया। जब
1930-31 में लंदन में गोलमेज सम्मेलन हुआ तबतक पुरे देश से अछूत जातियों से एकमात्र
बैरिस्टर बाबा साहेब थे। आगे जातिवाद के चलते उन्हें ज्यादा केस नही मिले इसलिए
उन्होंने बाटली बॉयज अकॉउंटेंसी ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में लेक्चरर का पद संभाला।
यहाँ मैंने इस बात पर प्रकाश डालने की कोशिश की कि जिस देश में छूने मात्र से लोग
बीमार और धर्म भृष्ट होने का डर पालते थे क्या वे भगत सिंह का केस लड़ सकते थे? भगत
सिंह का केस लाहौर में चल रहा था जबकि डॉ अम्बेडकर बम्बई और गांधी आदि दिल्ली में
थे। भगत सिंह के केस की पैरवी आसिफ अली कर रहे थे जो अमेरिका में भारत के प्रथम
राजदूत भी रहे, इसके अलावा ऑस्टिया, स्विट्जरलैंड आदि में भी राजदूत रहे हैं। जबकि
भगत सिंह के खिलाफ और अंग्रेजों की तरफ से पैरवी करने वाले सूर्य नारायण शर्मा थे
जो आरएसएस संस्थापक गोवलकर के बहुत अच्छे मित्र भी थे।
अब बात गांधीजी की करते हैं तो आपको बता दूं कि गांधीजी व कांग्रेस भगत सिंह,
सुखदेव और राजगुरु को बचा जरूर सकते थे मगर उनकी भगत सिंह से कोई दुश्मनी नही थी।
गांधी को पढ़ने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि गांधी और भगत सिंह में वैचारिक मतभेद
था। वे केवल अपने सिंद्धान्तों की वजह से खामोश थे। गांधी जी धर्म, ईश्वर, अहिंसा
के समर्थक थे जबकि भगत सिंह कट्टर नास्तिक और कट्टर वामपंथी विचारधारा के थे जैसा
कि भगत सिंह की किताब "मैं नास्तिक क्यों हूँ"से पता चलता है। बस इन्हीं विचारों ने
इन दोनों को एकसाथ नही आने दिया। कुछ लोग गांधी को कसूरवार मानते हैं और इसी वजह से
वे गोडसे के समर्थन में भी खड़े हो जाते हैं जबकि गोडसे और सावरकर किस विचार के थे
यह भी स्मझनता आवश्यक है।
जिन्हें लगता है कि देश, धर्म, सभ्यता, संस्कृति की खातिर गोडसे ने गांधी को मारकर
सही किया उन्हें इतना भी अवश्य स्मझनता चाहिए कि सावरकर को आजकल जिस रूप में पेश
किया जा रहा वह केवल एक हवाबाजी है। 1911 को जब सावरकर को अंडमान जेल में 50 वर्ष
की सजा का शुरू हुई थी तब सावरकर ने अंग्रेज सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि यदि
सरकार मुझे छोड़ देती है तो मैं भारत की आजादी की लड़ाई छोड़ दूंगा और उपनिवेशवादी
सरकार के प्रति वफादार रहूंगा। सावरकर ने ऐसी याचिकाएं 1913, 1921 व 1924 में भी
लगाई हैं। वहीँ दूसरी तरफ भगत सिंह के शब्दों पर भी गौर किया जाये। भगत सिंह ने
अंग्रेजी सरकार से कहा था कि उनके साथ राजनितिक बंदी जैसा व्यवःहार किया जाय और
फांसी देने की बजाय गोलियों से भुना जाय।
। इस देश में हजारों की तादाद में वकील और नेता थे जो तब नजर नही आये और आज उन्ही
के वंशज पूछते हैं कि फांसी क्यों नही रुकवाई? पाकिस्तान के एक वकील इम्तियाज
कुरैशी ने 2013 में भगत सिंह की केस को दोबारा खुलवाया है। अब जिसकी पैरवी उनके
वालिद अब्दुल रशीद कर रहे हैं।
2014 में अब्दुल ने एफआईआर की कॉपी मांगी तो पता चला कि एफआईआर में भगत सिंह का नाम
ही नही है उन्हे रजिस्टर के आधार पर फांसी दी गई। वकील अब्दुल राशिद का कहना है कि
भगत सिंह आज़ादी के पहले के शहीद है और हमारे आदर्श भी, उन्होंने कहा है कि जिस तरह
जलियांवाला भाग के लिए ब्रिटिश महारानी ने माफ़ी मांगी है ठीक उसी तरह भगत सिंह,
सुखदेव और राजगुरु की फांसी पर उन्हें माफ़ी मांगनी होंगी।



By iamksvr - May 17, 2020 1 comment:
Email ThisBlogThis!Share to TwitterShare to FacebookShare to Pinterest




ZOOM APP: लॉकडाउन भारत में सबसे ज्यादा डाउनलोड किया गया मोबाइल एप




ZOOM APP:  लॉकडाउन भारत में सबसे ज्यादा डाउनलोड किया  गया मोबाइल एप 






जब देश व दुनिया  में लॉकडाउन चल रहा है और लोगो को आपस में मिलने और आसपास जाने पर
रोक टोक है तो अब ऐसे में काम कैसे किया जा सकता है ,तो जरुरत थी किसी साधन की और
जरिये की जिससे आपस में बातचीत हो सके,अब ऐसे में एक एप है जो काफी प्रसिद्ध हुई
हालाँकि ये पहले से ही डिजिटल मार्केट में उपलब्ध थी लेकिन कहते हैं न कि समय समय
की बात है इसी बात का फायदा मिला zoom application को। और साथ ही कंपनियों ने भी
अपने कर्मचारियों को 'वर्क फ्रॉम होम' दे रखा है. तो  अपने कर्मचारियों से ओफिसिअल
वर्क के सिलसिले में Video Conferencing, Skype,WhatsApp इत्यादि के माध्यम से
कनेक्टेड रहना चाहतीं हैं. कंपनियों की इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए Zoom
App काफी मददगार साबित हो रहा है. Zoom App का उपयोग आज  500,000 से अधिक संगठनों
द्वारा किया जा रहा है.


ज़ूम वीडियो कम्युनिकेशंस एक अमेरिकी रिमोट कॉन्फ्रेंसिंग सेवा कंपनी है जिसका
मुख्यालय सैन जोस, कैलिफोर्निया में स्थित है । यह एक दूरवर्ती कॉन्फ्रेंसिंग सेवा
प्रदान करता है जिसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ऑनलाइन मीटिंग, चैट , मोबाइल और
कम्प्यूटर के सहयोग से जोड़ता है।ज़ूम की स्थापना 2011 में सिस्को सिस्टम्स के एक
प्रमुख इंजीनियर एरिक युआन और इसकी सहयोग व्यवसाय इकाई वेबएक्स द्वारा की गई थी
।  जिसमें एक साथ 100 लोग Video Conferencing के जरिए बात कर सकते हैं. इस ऐप के
माध्यम से one to one मीटिंग और ग्रुप कॉलिंग की सुविधा 40 मिनट के लिए उपलब्ध है. 
वीडियो ऑडियो कालिंग के जरिये जुड़ा जा सकता है। इसके साथ ही आप चाहे तो वीडियो को
रिकॉर्ड भी कर सकते है। 
Zoom App के क्या फीचर्स हैं
1. One-On-One वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग:  ज़ूम एप दो लोगों को एक दूसरे को ऑडियो और
वीडियो के माध्यम से जुड़ने की सुविधा देता है.
2. ग्रुप मीटिंग: इस एप का मुफ्त संस्करण 40 मिनट के लिए एक बार में 100 सदस्यों को
जोड़ सकता है, लेकिन सदस्यों  की संख्या 500 तक बढ़ाई जा सकती है और 40 मिनट की समय
सीमा को भी बढाया जा सकता है.
3. ज़ूम मीटिंग: इसका मतलब है कि यदि Zoom App के माध्यम से आप ठीक उसी प्रकार  की
मीटिंग संचालित कर सकते हैं  जैसी कि ऑफिस में सबके फिजिकली प्रेजेंट होने पर होती
है. 
4. यह फीचर कंपनियों के कॉन्फ्रेंस रूम में वीडियो कॉल के जरिए मीटिंग करने के लिए
फिजिकल सेटअप की सुविधा देता है.


ज़ूम एप कैसे डाउनलोड करे ?


ज़ूम के डेस्कटॉप वर्शन(version) के साथ मोबाइल एप भी उपलब्ध है। जो की एंड्राइड
और IOS दोनों प्रकार की डिवाइस पर चलते है। आप ज़ूम एप को गूगल प्ले स्टोर और IOS एप
स्टोर से डाउनलोड कर सकते है।


ज़ूम मीटिंग अकाउंट कैसे बनाएं ?





जब आप इस एप्लीकेशन को डाउनलोड कर लेते हैं| और जैसे ही ओपन करते हैं आपके सामने
कुछ ऑप्शन आते हैं| अगर पहले से ही कोई मीटिंग चल रही हो तो आप सीधा डायरेक्टली
मीटिंग को ज्वाइन कर सकते हैं| या फिर आप अपना अकाउंट भी बना सकते हैं अकाउंट बनाने
के लिए|

Sign up

साइन अप वाले ऑप्शन पर जाएं जैसे आप इस पर क्लिक करते हैं आपके सामने एक नया पेज
खुल कर आ जाता है जहां पर आपको कुछ जानकारी बनने की आवश्यकता होती है जैसे कि|

 Gmail Account

 First Name

 Last Name

जैसे आप यह सब जानकारी है भर देते हैं नीचे “I Agree To Terms & Cond| service” इस
पर क्लिक करें जैसे ही आप कंटिन्यू पर क्लिक करते हैं आपके सामने एक नया पेज खुलता
है जहां पर कहा जाता कि आपके जीमेल अकाउंट पर एक वेरिफिकेशन link गई होगी जिसको
अपने अकाउंट में जाकर वेरीफाई करना होगा| अपना जीमेल खोल कर अपने अकाउंट को वेरीफाई
कर सकते हैं|



Set Zoom App Password

जैसे ही आप मेल से अपने अकाउंट को वेरीफाई करते हैं आपके सामने एक नया पेज खुलता है
जिसमें कहा जाता है कि आप अपना पासवर्ड सेट करें| तो आप ऐसा पासवर्ड रखे हैं जिसे
आप याद रख सकते हैं जिससे लॉगिन करने में आपको आसानी हो|

जैसे ही आप अपना पासवर्ड सेट कर लेते हैं आप अपनी एप्लीकेशन में जाएं और अपने
अकाउंट को लॉगइन कर सकते हैं|



जैसे ही आप अपने Zoom Account Login हो जाते हैं आपके सामने कुछ ऑप्शन दिखाई देते
हैं जैसे कि



New meeting-

अगर आप कोई मीटिंग करना चाहते हैं तो आपने मीटिंग पर क्लिक करके लोगों को ज्वाइन
करके अपनी मीटिंग स्टार्ट कर सकते हैं| जिसमें आप के टीम मेंबर, या आप के
स्टूडेंट्स को ऐड कर सकते हैं| जिसे चाहे आप यहां पर ऐड करके अपनी न्यू मीटिंग
स्टार्ट कर सकते हैं|



join Meeting-

अगर आपके पास किसी की या आपके कंपनी की मीटिंग आईडी है तो ज्वाइन मीटिंग में क्लिक
करके आप मीटिंग आईडी को डालें और  उस मीटिंग में ज्वाइन हो जाएंगे|



Schedule-

इसका इस्तेमाल ज्यादातर टीचर्स, और बड़े ऑफिस में किया जाता है जहां पर अपना
शेड्यूल सेट किया जाता है| कि इस समय हमारी मीटिंग स्टार्ट होने वाली है और सभी के
सभी फ्री रहें| जब आप अपनी zoom channel मीटिंग को फिक्स करते हैं तो यहां पर आप
अपने हिसाब से टाइम सेट कर सकते हैं कि ऑटोमेटिक आपकी मीटिंग सभी तक कैसे पहुंच जाए
और वह सभी ऑनलाइन हो जाएं|और आप अपनी मीटिंग आईडी उन सभी तक पहुंचा सकते हैं जिनको
आप इस ग्रुप में ऐड करना चाहते हैं| और साथी अगर आप पासवर्ड बनाना चाहते हैं तो वह
भी आप बना सकते हैं जिससे बिना पासवर्ड डाले कोई आपके साथ कनेक्ट ना हो सके|
वर्ष 2020 में, ज़ूम के उपयोग में साल की शुरुआत से मार्च के मध्य तक 67% की वृद्धि
की, क्योंकि स्कूलों और कंपनियों ने कोरोनोवायरस महामारी के कारण, दूरस्थ कार्य के
लिए मंच को अपनाया। हजारों शिक्षण संस्थान ज़ूम का उपयोग करके ऑनलाइन कक्षाऐ चला
रहे है | 




ज़ूम एप्प के नुकसान ? 

जब भी किसी पर मुसीबत आती है तो बड़ी-बड़ी कंपनियां अपना फायदा सबसे पहले देखने
लगती हैं उसी प्रकार से यह एप्लीकेशन भी अपना फायदा बहुत ज्यादा देखने लगी
है| जागरण न्यूज़पेपर द्वारा एक खुलासे में कहा गया है कि| Zoom अपना DATA फेसबुक
के साथ शेयर कर रहा है| चाहे आपका अकाउंट फेसबुक पर हो या ना हो फिर भी आप की
जानकारियां बेची जा रही हैं| यह आपका बायोडाटा देख रहा है कि आप कब कब ऑनलाइन आते
हैं कब अपना एप्लीकेशन को खोलते हैं कौन सी एप्लीकेशन खोल रहे हैं| और किन-किन से
ज्यादातर बात करते हैं| इत्यादि और भी बहुत सी जानकारियां देखी जा रही हैं|
जूम को अपने सॉफ्टवेयर में कई सुरक्षा और कमजोरियों के कारण महत्वपूर्ण विवादों का
सामना करना पड़ा है,
कोरोनोवायरस महामारी में खराब गोपनीयता और कमजोर सुरक्षा के आरोप भी लगाऐ गये है
।ज़ूम की किसी भी बैठक में शामिल होने के लिए पासवर्ड की आवश्यकता होती है। इसके
अतिरिक्त, ज़ूम ने गलत और खराब सूचनाओं की संभावना को कम करने के लिए एक गाइड
प्रकाशित किया।
ज़ूम ने अपने डेटा सुरक्षा और गोपनीयता में भी वृद्धि हुई है। नतीजन, जूम के सीईओ
ने सुरक्षा मुद्दों के लिए माफी मांगते हुए एक बयान जारी किया। कुछ नियम ज़ूम ने
"पूर्ण आईटी समर्थन वाले बड़े संस्थानों" के लिए डिज़ाइन किए थे। इन मुद्दों से
निपटने के लिए, ज़ूम ने कहा है कि यह डेटा गोपनीयता पर ध्यान केंद्रित करेगा और एक
पारदर्शिता रिपोर्ट जारी करेगा।


ज़ूम एप को कैसे सुरक्षित करे ?
ज़ूम एप को कैसे सुरक्षित करे ये एक बड़ा प्रश्न है | संभव हो तो ज़ूम एप का प्रयोग न
करे । अगर 

आप रखे क्योकि कंपनी समय समय पर सुरक्षा सम्बन्धी 

पासवर्ड को मजबूत बनाए सिक्योरिटी एजेंसी ने ज़ूम से होने वाली मीटिंग के लिए कुछ
सुरक्षा उपाए बताए है। जितने लोग मीटिंग में शामिल है वो सभी लोग अपने ज़ूम अकॉउंट
का पासवर्ड मजबूत बने जिसका अंदाजा लगाना कुछ मुश्किल हो।

मजबूत पासवर्ड बनाने के लिए आप पासवड में आदि का प्रयोग कर सकते है। जैसे
Khabari007$# |

सुरक्षा खामियों के कारण गूगल के साथ ही कई देशो ने ज़ूम एप के प्रयोग पर पाबंदी लगा
दी है।
विभिन्न गोपनीयता और सुरक्षा कारणो को देकते हुए , कई संगठनों और सरकारी संस्थाओं
ने ज़ूम के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है :
 * ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल 

 * बर्कले, कैलिफोर्निया (पब्लिक स्कूल का उपयोग)

 * कनाडा (संघीय सरकार को सुरक्षित संचार की आवश्यकता होती है)
 * क्लार्क काउंटी, नेवादा (पब्लिक स्कूल का उपयोग) 

 * जर्मन विदेश मंत्रालय 

 * गूगल 

 * नासा 

 * न्यूयॉर्क सिटी (पब्लिक स्कूल उपयोग)

 * सिंगापुर शिक्षा मंत्रालय

 * स्मार्ट संचार

 * स्पेसएक्स

 * ताइवान (सरकारी उपयोग) 

 * यूनाइटेड किंगडम रक्षा मंत्रालय
 * संयुक्त राज्य सीनेट



By iamksvr - May 17, 2020 1 comment:
Email ThisBlogThis!Share to TwitterShare to FacebookShare to Pinterest


Older Posts Home

Subscribe to: Posts (Atom)


DISCLAIMER OF BLOG

Disclaimer All the information on our website
https://allknowledgefun.blogspot.in is published in good faith and for
general...


 * MP SI CUTOFF 2016 AND 2017
                                  PROFESSIONAL EXAMINATION BOARD, BHOPAL CD
   POLICE RECRUITMENT TEST : 2016 CUT-OFF FIRST-PHASE TOTAL SE...
   
 * General Management notes in hindi सामान्य प्रबंधन नोट्स RaEeS Ksv
   सामान्य प्रबंधन नोट्स   DOWNLOAD FULL PDF
   
 * JCB BASIC ENGINE TRAINING MANUAL 1
                                                                               
                                                              ...
   





SEARCH THIS BLOG






PAGES

 * Home
 * प्रधानमंत्री को देशहित में श्राप देने वाले महान पुजारियों को पाकिस्तान और चीन
   सीमा-रेखा पर भेजने बाबत आवेदन
 * Download Intelligence Bureau ACIO Admit Card 2017
 * भारतरत्न डॉ• अम्बेडकर *बाबा साहब* के बारे मे
 * प्रिय शिवराज जी को अनोखा पत्र कौन बनेगा करोड़पति मुख्यमंत्री *"मामा"*
 * ली जाने वाली छुट्टी एवं उसके नियम :-अवकाश अधिनियम 2010
 * PEB PATWARI EXAM MODEL PAPERS ALL SHIFTS
 * MP SI 2017 Allshifts Modal Answers
 * MP current affairs 2017 मध्य प्रदेश हिंदी कर्रेंट ...
 * आरक्षण पर एक कविता Poem on Reservation




BLOG ARCHIVE

Blog Archive May (2) May (2) June (5) May (1) April (5) March (2) February (19)
January (26) December (15) November (3) October (11) September (14) August (133)
July (87)



LABELS

 * 15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता दिवस के रोचक तथ्य
 * 1500 Computer Awareness Question in English
 * 16 अप्रैल कई कारणों से दर्ज है
 * 400 CONCEPTS TO CRACK GATE – 2018
 * About New indian 50 rupees Note 50 रुपए नोट
 * adfly post
 * Antonyms 200 word capsule
 * application on vyapam result
 * Basic Weights
 * Best tricky gk
 * Books all you need at one place
 * Building materials
 * Calculation of Cement required for 12 mm plaster of 1:6 (easy way)
 * CGL Tier-1 2017 में पूछे गए सामान्य जागरूकता के प्रश्न
 * Civil Engineering Water Resources MCQs
 * COCHIN SHIPYARD LIMITED KOCHI-15 notice
 * COLLECTION OF 1000 IMPORTANT GS QUESTIONS IN HINDI
 * Computer Languages And Their Inventors
 * CONSTRUCTION ELEMENTS
 * Current Affairs – July 2017 in english
 * DESIGN OF SLABS
 * Disclaimer of blog
 * DSSSB Vacancy 2017
 * Earthquake-Proof Buildings
 * Eligibility
 * Exam Date
 * Fluid and It’s Properties
 * FOR MP SUB-INSPECTOR IMPORTANT QUESTIONS
 * FOUNDATIONS & FOUNDATION ENGINEERING
 * General knowledge quiz
 * Geography GK Questions and Answers in hindi
 * gk quiz
 * gk tricks
 * Heat & mass transfer
 * HOW TO APPLY online through MHA’s intelligence bureau form
 * How to interpolate using 991MS scientific calculator : Interpolation
 * IAF Recruitment 2017
 * IDIOMS PHRASE : TOP 50 QUESTIONS
 * important gk and pdfs one liners
 * IMPORTANT GOVERNMENT SCHEMES
 * Important maths Formule
 * INDIA’s NEW CABINET MINSTERS LIST & PORTFOLIO 2017
 * IRS (UPSC - 2015 )
 * JCB BASIC ENGINE TRAINING MANUAL
 * JCB Training manual 2
 * Madhya Pradesh Current Affairs -January 2017 To July 2017
 * Measures and Conversion Factors – Civil Engineering
 * MP GENERAL KNOWLEDGE
 * MP SI टाइटैनिक से जुड़ी खास बातें
 * MP Sub Inspector Exam 2017 Download full Notification
 * MP Vyapam Patwari Bharti Exam notice and Syllabus पटवारी भर्ती 2017
 * NATIONAL GAMES OF COUNTRIES
 * National Symbols Of India In Hindi
 * New GATE Exam 2018 Notification
 * NO.of Cement Bags Required in M15 Concrete very easy method
 * Normalization formula for gate and Vyapam
 * NTPC A Junior Engineer (Civil)-cum-Estate Assistant Test paper
 * Paramount Biology Book PDF
 * Paramount English General Airthematic Book PDF
 * Paramount English Neetu Singh
 * Paramount English volume 2 pdf
 * PILE FOUNDATIONS
 * questions on complex variables
 * REFERENCE BOOKS IN ENGINEERING in pdf
 * ROOF TRUSS TYPES
 * RRB (Railway Recruitment Board) Assistant LOCOPILOT and Technician Vacancies
 * SATI semester paper 2015 Computational Methods in structural Engineering
 * Septic Tank Design and Construction
 * SOIL ENGINEERING IMPORTANT FORMULAS
 * SOME USEFUL WEBSITES ONLINE EDUCATIONAL SUPPORT
 * SSC 2014(JE PAPER 2) Cement required For Brickwork
 * SSC JE 2017 Application Form
 * SSC JE CIVIL MAINS PAPER II 2016
 * SSC JE MECHANICAL MAINS PAPER II 2016
 * STUDY MATERIAL (ePDF)
 * The More It Hurts-Shadow Ash
 * TYPES OF FOUNDATIONS
 * UNITED INDIA INSURANCE COMPANY LIMITED recruitment post of ASSISTANT
 * Units of Measurement
 * Vyapam Sub Engineer exam civil branch Share marks
 * what is Fidget Spinner यह क्या है ? क्यों हो रहा है यह वायरल ?
 * World History Quiz in Hindi विश्व इतिहास प्रश्न और उत्तर
 * उज्जैन के दर्शनीय स्थल
 * उज्जैन में 6 दशक पूर्व हुआ था अर्द्ध-कुम्भ
 * एक नजर मध्य प्रदेश
 * क्या Sarahah ऐप हैक करके मैसेज करने वाले को पहचाना जा सकता है?
 * खेत तालाब योजना
 * गजल की मलिका और महान गायिका बेगम अख्तर
 * गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी
 * गौरवी केंद्र के शुभारंभ में पहुँचे अभिनेता आमिर खान
 * नमामि देवी नर्मदे-नर्मदा सेवा यात्रा-2016
 * न्यूज़ पेपर -- ज्ञान का खजाना by-अवधकिशोर पवार
 * पर्यटन स्थल मध्यप्रदेश
 * पाषाण एवं ताम्रकाल मध्यप्रदेश
 * प्रतिभा किरण योजना
 * प्राचीन काल मध्यप्रदेश
 * प्राचीन भारत- जैन धर्म
 * ब्लू व्हेल' गेम मौत का दूसरा नाम बन चुका है
 * भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मध्यप्रदेश
 * भारत के गवर्नर -जनरल
 * भारत के नोबल पुरस्कार प्राप्त भारतीय
 * भारत के राष्ट्रपति चित्र सहित
 * भारत के सभी 29 राज्यों के स्थापना वर्ष की सूची
 * भारत में प्रथम महिला व प्रथम पुरुष
 * भारतीय अर्थव्यवस्था: सामान्य ज्ञान
 * मध्य प्रदेश के न्यायाधिपतियों की सूची
 * मध्य प्रदेश के मंत्रियों की सूची
 * मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्रियों की सूची
 * मध्य प्रदेश के राज्यपालों की सूची
 * मध्यकाल मध्यप्रदेश
 * मध्यप्रदेश का इतिहास
 * मध्यप्रदेश की जन - जातियाँ
 * मध्यप्रदेश की प्रमुख जानकारी मध्यप्रदेश की प्रमुख जानकारी
 * मध्यप्रदेश की भौगोलिक अवस्थिति
 * मध्यप्रदेश के प्रमुख कवि एवं साहित्यकार
 * मध्यप्रदेश के प्रमुख फ़िल्मी कलाकार
 * मध्यप्रदेश के प्रमुख मेले
 * मध्यप्रदेश के प्रमुख शिल्प और हस्तशिल्प
 * मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव
 * मध्यप्रदेश गान
 * मध्यप्रदेश महामहिम राज्यपाल श्री ओम प्रकाश कोहली मध्यप्रदेश
 * मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान
 * मध्यप्रदेश में ग्रामीण अभिशासन
 * मध्यप्रदेश राज्य का जिलेवार अध्ययन
 * मध्यप्रदेश से संबंधित प्रकाशन सूची
 * महत्वपूर्ण शब्द के पूर्ण रूप Full Forms Of Important Words
 * मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना
 * मुख्यमंत्री आवास योजना
 * मुख्यमंत्री कन्यादान योजना
 * मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना CMGSY
 * मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना
 * मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग स्व-रोजगार योजना
 * मुख्यमंत्री पेयजल योजना
 * मुख्यमंत्री युवा इंजीनियर-कान्ट्रेक्टर योजना
 * मुख्यमंत्री युवा इंजीनियर-कान्ट्रेक्टर योजना हेतु आवश्यक अहर्ताएँ
 * मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के 7 वर्ष
 * मुगलकाल मध्यप्रदेश
 * मुंशी प्रेमचंद Munshi Premchand Biography
 * मेहमान प्रवक्ताओं के अमंत्रण हेतु ववज्ञापन मध्यप्रदेश शासन तकनीकी
 * मोदी मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों के विभाग
 * रचनाकार और उनकी रचनाएँ
 * रैदास Ravidas RAIDAS BIOGRAPHY
 * लगभग 200 प्रमुख किताबों का पीडीएफ लिंक
 * वन्दे मातरम् राष्ट्रीय गीत
 * वर्ष 2016 से 2023 तक होने वाली 20 राष्ट्रीय व विश्व स्तरीय खेलकूद
   प्रतियोगिताएँ
 * विक्रमादित्य और उनके नवरत्न
 * विश्व इतिहास आधारित सामान्य ज्ञान प्रश्न और उत्तर
 * विश्व की प्रमुख स्थानीय पवनों की सूची स्थानीय पवनों के नाम प्रकृति
 * वैदिक संस्कृति पर आधारित सामान्य ज्ञान
 * शुंग और कुषाण मध्यप्रदेश
 * सामान्य प्रबंधन नोट्स RaEeS Ksv
 * सिंधु घाटी सभ्यता सामान्य ज्ञान
 * सौरमंडल की सामान्य जानकारी
 * स्टीव जॉब्स जीवनी
 * हमारे देश की आज़ादी के अलावा भी 15 August ख़ास है. ऐसा क्यों हैं
 * हाई-वे पर दूरी बताने वाले पत्थरों के रंग अलग क्यों होते हैं?




REPORT ABUSE


BOOKS AND FILES

 * Normalization formula for gate and Vyapam
 * Paramount Biology Book PDF
 * Paramount English General Airthematic Book PDF
 * Paramount English Neetu Singh
 * Paramount English volume 2 pdf




MP GENERAL KNOWLEDGE

 * FOR MP SUB-INSPECTOR IMPORTANT QUESTIONS
 * Madhya Pradesh Current Affairs -January 2017 To July 2017
 * MP GENERAL KNOWLEDGE
 * MP Sub Inspector Exam 2017 Download full Notification
 * MP Vyapam Patwari Bharti Exam notice and Syllabus पटवारी भर्ती 2017
 * उज्जैन में 6 दशक पूर्व हुआ था अर्द्ध-कुम्भ
 * एक नजर मध्य प्रदेश
 * खेत तालाब योजना
 * गौरवी केंद्र के शुभारंभ में पहुँचे अभिनेता आमिर खान
 * नमामि देवी नर्मदे-नर्मदा सेवा यात्रा-2016
 * पर्यटन स्थल मध्यप्रदेश
 * पाषाण एवं ताम्रकाल मध्यप्रदेश
 * प्रतिभा किरण योजना
 * प्राचीन काल मध्यप्रदेश
 * भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मध्यप्रदेश
 * मध्य प्रदेश के न्यायाधिपतियों की सूची
 * मध्य प्रदेश के मंत्रियों की सूची
 * मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्रियों की सूची
 * मध्य प्रदेश के राज्यपालों की सूची
 * मध्यकाल मध्यप्रदेश
 * मध्यप्रदेश का इतिहास
 * मध्यप्रदेश की जन - जातियाँ
 * मध्यप्रदेश की प्रमुख जानकारी मध्यप्रदेश की प्रमुख जानकारी
 * मध्यप्रदेश की भौगोलिक अवस्थिति
 * मध्यप्रदेश के प्रमुख कवि एवं साहित्यकार
 * मध्यप्रदेश के प्रमुख मेले
 * मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव
 * मध्यप्रदेश गान
 * मध्यप्रदेश महामहिम राज्यपाल श्री ओम प्रकाश कोहली मध्यप्रदेश
 * मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान
 * मध्यप्रदेश में ग्रामीण अभिशासन
 * मध्यप्रदेश से संबंधित प्रकाशन सूची
 * मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना
 * मुख्यमंत्री आवास योजना
 * मुख्यमंत्री कन्यादान योजना
 * मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना CMGSY
 * मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना
 * मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग स्व-रोजगार योजना
 * मुख्यमंत्री पेयजल योजना
 * मुख्यमंत्री युवा इंजीनियर-कान्ट्रेक्टर योजना
 * मुख्यमंत्री युवा इंजीनियर-कान्ट्रेक्टर योजना हेतु आवश्यक अहर्ताएँ
 * मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के 7 वर्ष
 * मुगलकाल मध्यप्रदेश
 * रचनाकार और उनकी रचनाएँ
 * शुंग और कुषाण मध्यप्रदेश




MECHANICAL ENGINEERING

 * Fluid and It’s Properties
 * Heat & mass transfer
 * questions on complex variables
 * SSC JE MECHANICAL MAINS PAPER II 2016




CIVIL ENGINEERING

 * Building materials (1)
 * Calculation of Cement required for 12 mm plaster of 1:6 (easy way) (1)
 * CONSTRUCTION ELEMENTS (1)
 * Earthquake-Proof Buildings (1)
 * Fluid and It’s Properties (1)
 * FOUNDATIONS & FOUNDATION ENGINEERING (1)
 * How to interpolate using 991MS scientific calculator : Interpolation (1)
 * Measures and Conversion Factors – Civil Engineering (1)
 * NO.of Cement Bags Required in M15 Concrete very easy method (1)
 * Normalization formula for gate and Vyapam (1)
 * NTPC A Junior Engineer (Civil)-cum-Estate Assistant Test paper (1)
 * PILE FOUNDATIONS (1)
 * questions on complex variables (1)
 * ROOF TRUSS TYPES (1)
 * SATI semester paper 2015 Computational Methods in structural Engineering (1)
 * SSC 2014(JE PAPER 2) Cement required For Brickwork (1)
 * SSC JE 2017 Application Form (1)
 * SSC JE CIVIL MAINS PAPER II 2016 (1)
 * TYPES OF FOUNDATIONS (1)
 * Units of Measurement (1)




VIDEOS SONGS AND ALLFUN

 * The More It Hurts-Shadow Ash



via GIPHY




VIDEOS SONGS AND ALLFUN

 * The More It Hurts-Shadow Ash




TRANSLATE ALLKNOWLEDGEFUN.BLOGSPOT.COM


Powered by Translate




LIKE US ON FACEBOOK


https://www.facebook.com/ALLKnowledgeFun



SUBSCRIBE TO

Posts
Atom

Posts

All Comments
Atom

All Comments





OUR TWITTERPAGES

 * TWITTER




N





TOTAL PAGEVIEWS

102472



FOLLOWERS





SUBSCRIBE TO

Posts
Atom

Posts

All Comments
Atom

All Comments







SUBSCRIBE TO

Posts
Atom

Posts

All Comments
Atom

All Comments





ⒸALLKnowledgeFun. Picture Window theme. Powered by Blogger.




Original text

Rate this translation
Your feedback will be used to help improve Google Translate