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* saralmaterials.com * About * हिन्दी * Register * Login * Practice Set * Contact SARALMATERIALS.COM >> आषाढ़ का एक दिन : अंर्तद्वन्द्व × search Custom Search Sort by: Relevance Relevance Date आषाढ़ का एक दिन : अंर्तद्वन्द्व Posted By Prakash Kumar on Saturday August 7 2021 1404 Hindi Literature Gadhya bhag » Mohan Rakesh आषाढ़ का एक दिन : अंर्तद्वन्द्व नाटक साहित्य में आधुनिक भावबोध का आगमन मोहन राकेश के नाटक साहित्य ‘आषाढ़ का एक दिन’ से होता है । यह अंर्तद्वन्द्वों का नाटक है। इसका द्वन्द्व साहित्य और सत्ता, भावना और कर्त्तव्य, यथार्थ और आदर्श, प्रणय और परिणय को लेकर है। कहीं यह द्वन्द्व प्रकृति में मेघों के बीच बिजली की कौंध के रूप में मौजूद है तो कहीं यह अम्बिका और मल्लिका, कालिदास और दंतुल, कालिदास और विलोम जैसे चरित्रों के बीच वैचारिक घात प्रतिघात को लेकर है। द्वन्द्व का एक अन्य स्तर, सार्थक व्यक्तित्व की तलाश में, एक हीं व्यक्ति के विभाजित व्यक्तित्वों की टकराहट से निर्मित होता है। ‘आषाढ़ का एक दिन’ में नाटककार कालिदास के काल्पनिक व्यक्तित्व को केन्द्र में रखकर एक अहं केन्द्रित निर्णयहीनता से ग्रस्त कालिदास का चरित्र गढ़ता है। ‘आषाढ़ का एक दिन’ अर्न्तद्वन्द्वों का नाटक है। इसके पात्र परस्पर संवाद बोलते हुए भी आत्मालाप करते हुए दिखायी पड़ते हैं। मांसिक अकेलापन इनकी नियति है। अम्बिका मल्लिका के साथ रहते हुए भी अकेलेपन से ग्रस्त है। वह कहती है, ‘‘मैं घर में अकेली कब होती हूँ? तुम्हारे यहाँ रहते मैं अकेली नहीं होती।’’ अम्बिका का अकेलापन उस चिंता का प्रतिफल है जो पुत्री तक सम्प्रेषित नहीं हो पा रही है। अम्बिका को संदेह है कि कालिदास मल्लिका को नहीं अपनाएगा। इसलिए वह उससे घृणा करती है, जबकि उसकी बेटी मल्लिका कालिदास से प्रेम करती है। अम्बिका और मल्लिका का द्वन्द्व कर्त्तव्य और भावना का द्वन्द्व है। कालिदास सर्जनात्मक प्रतिभा का अन्वेषी हैं| जीवन में उसका भटकाव अन्वेषण धर्मिता का हीं परिणाम हैं उसका व्यक्तित्व अस्थिर और अर्न्तद्वन्द्व ग्रस्त हैं। वह जिम्मेदारियों से भागने वाला चरित्र है। वह प्रेमिका के प्रति अपने नैतिक कर्त्तव्य के निर्वाह तथा काश्मीर के शासक के रूप में अपनी राजनैतिक जिम्मेदारी के प्रति निष्ठा नहीं रखता। वह कश्मीर में विद्रोह भड़क जाने पर अपनी राजनैतिक जिम्मेवारी से उसी तरह भागता है जिस तरह मल्लिका से। मल्लिका भी उसकी एक भावनात्मक जिम्मेदारी है। कालिदास दो मूल्यों और दो आकर्षणों को लेकर विभाजित है। उसके भीतर प्रेमी और शासक का द्वन्द्व बहुत तीव्र है। वह मल्लिका से कहता है, ’’मैं वह व्यक्ति नहीं हूँ जिसे तुम पहले पहचानती रही हो दूसरा व्यक्ति हूँ और सच कहुँ तो वह व्यक्ति हूँ जिसे मैं स्वयं नहीं पहचानता।’’ कालिदास ने अपने ही रचनाकार व्यक्तित्व पर एक शासकीय व्यक्तित्व आरोपित कर लिया है। उसकी समस्या प्रमाणिक जिंदगी के लिए प्रणय और शासन, साहित्य और सत्ता, प्रेमिका और पत्नी में से किसी एक को न चुन पाने के कारण हैं। कालिदास कहीं टिक नहीं पाता इसके मूल में है उसकी निर्णय हीनता। कालिदास प्रेमिका और राज्यधिकार को लेकर चाहे जितना गैर जिम्मेदार दिखायी पड़े लेकिन अपनी रचनात्मकता के प्रति वह बेहद इमानदार है। शुरू में भी वह मानता था कि यह ग्राम प्रांतर ही उसकी प्रेरणा की वास्तविक भूमि है और अब भी वही मानता है। ग्राम प्रांतर और प्रेमिका के प्रणय को यदि वह अपनी रचनात्मकता की प्रेरणा नहीं मानता, तो नयी रचनाशीलता के दबाव के कारण राजमोह त्याग अपने गाँव मल्लिका के पास नहीं लौटता। मल्लिका की गोद में बच्ची को देखकर उसका मोहभंग यह प्रमाणित करता है कि उसे अपनी नयी रचनाशीलता के लिए एक साबूत सम्पूर्ण प्रेरणा चाहिए विभाजित नहीं। इसलिए वह फिर मल्लिका के यहाँ से भी उखर कर एक नयी प्रेरणा भूमि की तलाश के लिए अनिश्चित की ओर निकल पड़ता है। कालिदास प्रणय और शासन, साहित्य और राजनीति को लेकर निश्चय ही बंटा हुआ है, लेकिन अपने रचनात्मक आग्रह को लेकर वह अविभाजित है। तभी तो वह वैवाहिक, सामाजिक, राजनीतिक संबंध को इतना महत्व नहीं देता जितना की भावनात्मक संबंध को। उसकी विडम्बना ही है कि वह जिसे चाहता है उसे छोड़़ना पड़ता है । ग्राम प्रान्तर और मल्लिका से वह प्रेरणा पाता है, लेकिन वहाँ रह नहीं पाता। मल्लिका उसकी रचनात्मकता को प्रोदिप्त करती है, लेकिन वह उससे विवाह नहीं कर पाता। प्रियंगुमंजरी से वह विवाह करता है जो उसकी रचनात्मकता को कुंद करती है। किसी भी नाटक का नाटकीय विधान उसकी द्वन्द्वात्मकता से सृजित होता है। ‘आषाढ़ का एक दिन’ की द्वन्द्वात्मकता कथा वस्तु, चरित्र एवं प्राकृतिक परिवेश में गुथी हुयी है। जेठ की तपती हुयी धरती आषाढ़ के पहले ही दिन धारासार वर्षा से तृप्त हो जाती है। नाटक में बाह्य क्रिया व्यापार का द्वन्द्व उतना नही है, जितना की भीतरी व्यापार का द्वन्द्व। पहले अंक में अम्बिका और मल्लिका के बीच का संधर्ष कर्त्तव्य और भावना, यथार्थ और आदर्श के बीच का द्वन्द्व है। कालिदास और विलोम के बीच सर्जनाशक्ति और जीवनाशक्ति, कालिदस और मातुल के बीच जनसत्ता और राजसत्ता के बीच का संधर्ष है। दूसरे अंक में प्रियंगुमंजरी और मल्लिका के बीच का वैसम्य सत्ता दर्प और जन स्वाभिमान के बीच के द्वन्द्व को मुखर बनाता है। मल्लिका में स्वत्व के अपहरण का और प्रयंगुमंजरी में स्वत्व के अपहरण से हुयी क्षतिपूर्त्ति का भाव है। तीसरे अंक में कालिदास मल्लिका और विलोम सब टूटे हुए हैं। कालिदास सत्ता और साहित्य, प्रणय और परिणय, राजमोह और सर्जनात्मकता के द्वन्द्व में उलझा हुआ है। जब वह राजमोह छोड़कर मल्लिका के पास वापस आता है और मल्लिका के गोद में बच्ची देखता है, तो मल्लिका से भी उसका मोह भंग हो जाता है। मल्लिका, अपने ग्राम प्रांतर और प्रदेश को छोड़कर किसी अनिश्चित की ओर कालिदास का बढ़ जाना उसके द्वन्द्व और तनाव को ही सूचित करता है। विलोम के लिए मल्लिका के मन विहीन तन की प्राप्ति उतनी हीं अधुरी है, जितना मल्लिका की तन विहीन मन के रूप में, कालिदास के लिए। मल्लिका भी तन और मन के स्तर पर बटी हुयी है। इस नाटक के सारे चरित्र अर्न्तद्वन्द्व ग्रस्त हैं और उनके इस अर्न्तद्वन्द्व से नाटक का पूरा वस्तु-विधान द्वन्द्वात्मक हो जाता है। इससे अनुकूल नाटकीयता सृजित होती है। इस नाटक में नाटककार ने चारित्रिक वैसम्य एवं मानव नियति की विडम्बनाओं के लिए कई रंग युक्तियों का सहारा लिया है। पहले अंक में मल्लिका आषाढ़ की पहली बारिस में भींग कर सुख का अनुभव करती है। लेकिन अन्तिम अंक के अन्त में वह अपनी बाहों में बच्ची को लिए कालिदास को पुकारती आगे बढ़ती है लेकिन बारिस में बच्ची को भींगते देख वापस धर आ जाती है। मल्लिका भावना और कर्तव्य को लेकर गहरे तनाव में है । दो अलग-अलग वर्षों में वारिस को लेकर दो अलग-अलग प्रभावों का निरूपण मल्लिका के व्यक्तित्व की परिवर्त्तनशीलता को द्योतित करता है। इससे जो संकेत व्यंजनाएँ फूटती है वे बहुत मर्मस्पर्शी है। नाटक में मेध के अनेक प्रतीकार्थ है। पानी से जुड़कर जो मेध जीवनदायी लगता है, वही अंधकार और बिजली से जुड़कर दुःखदायी। मेध गर्जन, बिजली एवं वर्षा के दृष्यश्रव्य बिम्ब नाटक में अलग-अलग प्रभाव पैदा करते है। # &lsquo # नाटक #&lsquo #&rsquo #अंक #अंधकार #अंर्तद्वन्द्व #अंर्तद्वन्द्वों #अकेलापन #अकेली #अकेलेपन #अधुरी #अनिश्चित #अनुकूल #अनुभव #अनेक #अन्त #अन्तिम #अन्य #अन्वेषण #अन्वेषी #अपनाएगा। #अपनी #अपने #अपहरण #अब #अम्बिका #अर्न्तद्वन्द्व #अर्न्तद्वन्द्वों #अलग-अलग #अविभाजित #अस्थिर #अहं #आकर्षणों #आगमन #आगे #आग्रह #आता #आत्मालाप #आदर्श #आधुनिक #आरोपित #आषाढ़ #इतना #इनकी #इमानदार #इस #इसका #इसके #इसलिए #इससे #उखर #उतना #उतनी #उनके #उलझा #उस #उसका #उसकी #उसके #उससे #उसी #उसे #एक #एवं #ओर #और #कई #कथा #कब #कर #करता #करती #करते #कर्तव्य #कर्त्तव्य #कश्मीर #कहता #कहती #कहीं #कहुँ #का #कारण #कालिदस #कालिदास #कालिदास #काल्पनिक #काश्मीर #कि #किसी #की #कुंद #के #केन्द्र #केन्द्रित #को #को। #कौंध #क्रिया #क्षतिपूर्त्ति #गर्जन #गहरे #गाँव #गुथी #गैर #गोद #ग्रस्त #ग्राम #गढ़ता #घर #घात #घृणा #चरित्र #चरित्रों #चारित्रिक #चाहता #चाहिए #चाहे #चिंता #चुन #छोड़कर #छोड़़ना #जन #जनसत्ता #जब #जबकि #जाता #जाती #जाना #जाने 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BPSC PRELIMS EXAM - SET 1 General Studies (45Q) Total Question - 45This practice set is useful for those student who is preparing for Bihar Public Service Commission examination for Prelims level and This practice set is also useful for various examination of state level and UPSC. आषाढ़ का एक दिन : शीर्षक की प्रासंगिकता, मल्लिका की त्रासदी / केन्द्रीय चरित्र एवं भाषा Saturday August 7 2021 1003 आषाढ़ का एक दिन : अभिनेयता / रंगमंच की दृष्टि से मूल्यांकण / शिल्प Saturday August 7 2021 1004 आषाढ़ का एक दिन : कलाकार का मांसिक संघर्ष और उसके व्यक्तित्व का दोहरापन / आधुनिक भावबोध Saturday August 7 2021 1058 अंधेर नगरी की संवाद योजना Saturday August 7 2021 1113 अंधेर नगरी के शिल्प / लोक नाट्य तत्व के प्रभाव। Saturday August 7 2021 1118 गोदान और मैला आँचल में तुलना Saturday August 7 2021 1149 मैला आँचल में राजनैतिक चेतना Saturday August 7 2021 1190 दिव्या Saturday August 7 2021 1326 अभिनेयता की दृष्टि से ‘अंधेर नगरी’ का मूल्यांकन / अभियन और रंगमंच की दृष्टि से ‘अंधेर नगरी’ की समीक्षा। Saturday August 7 2021 1390 आषाढ़ का एक दिन : अंर्तद्वन्द्व Saturday August 7 2021 1404 POUPULAR POST भारत दुर्दशा का मूल्यांकन / भारत दुर्दशा में नवजागरण/ भारत दुर्दशा का कथ्य या प्रतिपाद्य?/ भारत दुर्दशा मे नायकत्व Saturday August 7 2021 2264 स्कंदगुप्त नाटक के आधार पर प्रसाद की राष्ट्रीय-सांस्कृतिक चेतना Saturday August 7 2021 1878 भारत दुर्दशा : अभिनेयता Saturday August 7 2021 1450 ‘अंधेर नगरी’ हिन्दी नवजागरण का प्रतिनिधि नाटक है। /भारतेन्दु ने अंधेर नगरी में तमाम्-बाधक तत्वों को आकार दिया है।/ अंधेर नगरी के आधार पर भारतेन्दु का युगबोध । Saturday August 7 2021 1447 आषाढ़ का एक दिन : प्रमुख पंक्तियाँ Saturday August 7 2021 1418 मैला आँचल की आंचलिकता Saturday August 7 2021 1405 आषाढ़ का एक दिन : अंर्तद्वन्द्व Saturday August 7 2021 1404 अभिनेयता की दृष्टि से ‘अंधेर नगरी’ का मूल्यांकन / अभियन और रंगमंच की दृष्टि से ‘अंधेर नगरी’ की समीक्षा। Saturday August 7 2021 1390 दिव्या Saturday August 7 2021 1326 मैला आँचल में राजनैतिक चेतना Saturday August 7 2021 1190 Recommended for you Educational Notes for UPSC, BPSC, JPSC, KPSC, UPPSC, RPSC, MPSC, TNPSC, APPSC, GPSC, MPPSC, WBPSC Etc www.saralmaterials.com Hindi Literature - 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